गुस्सा अभिशाप नहीं, वरदान है /Anger is Good For You

गुस्सा अभिशाप नहीं, वरदान है

Women angry on her boyfriend                                        –

‘‘गुस्सा’’ जिसे हमारा समाज इंसान की कमजोरी, बेवकूफी, पागलपन या गंवारपन समझता है, वास्तव में हमारे लिए अभिशाप नहीं, वरदान है । गुस्सा भी प्यार, ममता, स्नेह और दया जैसी ही एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जो हमें सहज और स्वस्थ बनाये रखती है । यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आहार ।

पर हम इस बात को मानने और समझने से मुंह चुराते हैं, क्योंकि हम सभ्यता का मुखौटा चढ़ाये हैं । सभ्यता का तकाजा यही है कि हम सदा प्रसन्नचित्त, विनम्र और मृदुभाषिणी बने रहें । भले ही अन्दर से हम जल-भुन कर कवाब हो रहे हों, मगर हमारे सौम्य मुखमंडल पर एक सहज मुस्कान और वाणी में शहद जैसी मिठास बनी ही रहनी चाहिए । क्या आपने कभी सोचा है कि इस ‘‘सिन्थेटिक सभ्यता’’ की खातिर ही एक दिन में हमें कितने मुखौटे बदलने पड़ते हैं या पूरे 24 घंटे में वैसे कितने क्षण आप निकाल पाती हैं, जब आप अपने प्राकृतिक या स्वाभाविक रूप में रहती हैं । कई बार तो यह नाटक करते-करते जिन्दगी ही एक नाटक बनकर रह जाती है ।

हम लोग रोज जीते हैं, नाटकों और मुखौटों की जिन्दगी

कई घटनायें हम रोज ही सुनते हैं, बल्कि ऐसी ही जिन्दगी हम में से अधिकांश लोग जीते भी हैं, नाटकों और मुखौटों की जिन्दगी, जिसे मूलतः हम पसन्द भी नहीं करते । यों हम अन्दर-ही-अन्दर घुटते भी हैं, सुलगते भी हैं, उलझते भी हैं, लेकिन आश्चर्य ! फिर भी रेशम के कीड़े की तरह अपने चारों ओर रेशम के जाल बुनते ही रहते हैं । क्या हम भी रेशम के कीड़े की तरह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि इस जाल में हम खुद ही फंसेंगें? हम सभ्यता के चाहे जितने गिलाफ चढ़ा लें, ऊपर से चाहे जितने आदर्शवादी बन जायें, मगर अन्दर से तो इंसान ही रहेंगें और गुस्सा इंसानियत की निशानी है, हमारा स्वभाव हमारी प्रकृति है ।

      सोचिये, गुस्सा कब और क्यों आता है ? उदाहरण के लिए कुछ घटनायें ले लेते हैं ।

      शाम को पतिदेव के साथ आपको किसी के घर खाने पर जाना है । आप शाम को तैयार होकर घंटों बैठी रहीं और रात को 10 बजे पतिदेव आकर कहते हैं, ‘‘अरे, मैं तो भूल ही गया था ।’’

      आज रात घर पर कुछ लोगों की दावत है । सामान की लिस्ट आपने सुबह ही दे दी थी, मगर पतिदेव शाम को सामान लाना भूल ही गये ।

      शाम को आप थकी-हारी आॅफिस से लौटीं तो घर में ताला पड़ा था ।

      आपको बहुत सारा काम करना है और आपने घर में कह दिया है कि कोई भी आये तो कह देना, ‘‘घर में नहीं हैं ।’’ फिर भी आपके एक गप्पी दोस्त से कोई कह दे कि ऊपर के कमरे में बैठी पढ़ रही हैं ।

      अपनी कोई खास राज की बात अपनी पक्की दोस्त को बताइये और उसने वह राज सबको बता दिया ।

      किसी आॅफिस में आपके दो मिनट के काम के लिए क्लर्क ने आपको दो घंटे बैठाये रखा और फिर भी काम नहीं किया ।

      आपके आॅफिस का कोई पुरुष आपकी विनम्रता का लाभ उठाने की कोशिश करता है । पीठ पीछे नमक-मिर्च लगाकर आपकी बातें सुनाता है ।

      आपको किसी जरूरी मीटिंग में पहुंचना है और टैक्सी वाले की बेवकूफी से आपको वहां पहुंचने में देर हो जाती हे ।

      आपके सुपुत्र का इम्तहान सिर पर है और वह दिन भर क्रिकेट खेलता है और शाम से टी.वी. देखने बैठ जाता है ।

अपनी नाराजगी जाहिर करना बेहद जरूरी

इसी तरह की बहुत सी बातें हैं, जो हमें गलत या बुरी लगती हैं, जिनसे हमें चोट पहुंचती है, मानसिक आघात लगता है, हमारी भावनाओं को ठेस लगती है, हमें दुख होता है और हमें गुस्सा आता है । ऐसी प्रतिकूल और अनचाही स्थितियों के लिए गुस्सा ही सबसे अच्छी सही और स्वाभाविक प्रतिक्रिया है । ऐसे में गुस्सा कर लेने से एक तो हमारे दिल का गुबार निकल जाता है, हमारी भावनाओं को बाहर निकलने का एक रास्ता मिल जाता है और हमें यह भी सुकून हो जाता है कि हमारी चोट का एहसास दूसरों को हो गया है । यह गुस्सा एक सबक हो जाता है और दूसरों की जल्दी हिम्मत नहीं पड़ती कि दुबारा हमारे साथ कोई धोखा, चालाकी या विश्वासघात करें । इसीलिए ऐसी स्थितियों पर अपनी नाराजगी जाहिर करना बेहद जरूरी है ।

गुस्सा कीजिये, ताकि आप बाद में खुश रह सकें

कुछ लोग समझते हैं कि गुस्सा करना इन्सान की सबसे बड़ी कमजोरी है और गुस्सा पी जाना सबसे बड़ी  बहादुरी । उनका ख्याल है कि गुस्से को वश में रखकर ही कोई सम्बन्धों को मधुर बनाये रखा जा सकता है और गुस्सा करने से संबंधों में दरार पैदा हो जायेगी, संबंध टूट जायेंगें, दोस्त मुंह मोड़ लेंगें और हमारी छवि एकदम बिगड़ जायेगी । कुछ लोग कहते हैं कि हमें गुस्सा कभी आया ही नहीं । ऐसे लोग ही हमें बहका देते हैं, गुस्सा उन्हें भी आता है । वे न सिर्फ दूसरों को धोखा दे रहे हैं बल्कि खुद भी धोखे में जी रहे हैं । आप सोचिये जब आप एक दूसरे से अपने दिल की बात कहते ही नहीं, तो आपके संबंध घनिष्ठ और मधुर कैसे हो सकते हैं ? ऐसे संबंध मधुरता का भ्रम तो बनाये रख सकते हैं, लेकिन वास्तव में कभी मधुर नहीं हो सकते । अब जरा यह भी देख लीजिए, कि गुस्से को दबाये रखने से क्या होता है ? मान लीजिए, आप एक आधुनिक महिला हैं, आपके पति की किसी लड़की से दोस्ती है, मगर आप इसे बुरा नहीं समझतीं, एक दिन आपको पता चलता है, कि आपके श्रीमान् उसके साथ पिक्चर गये, जबकि आपके साथ पिक्चर जाने की उन्हें कभी फुरसत ही नहीं मिलती । आपको गुस्सा आता है, मगर आप कुछ नहीं कहतीं, सभ्यता के नाम पर संयत रह जाती हैं, लेकिन आपके अन्तर्मन में तो गुस्से का लावा उबलने ही लगा है । फिर आपको ऐसी ही कोई और बात पता चलती है, लेकिन आप सच को स्वीकारना नहीं चाहतीं । गुस्सा करने से कहीं बात और न बिगड़ जाये, यह  डर रहने लगता है आपको । आपके मन में एक अन्तद्र्वंद्व शुरू हो जाता है । अपने गुस्से पर काबू रखने के लिए आप नये-नये तर्क तलाश लेती हैं । गुस्से से बचने के लिए बहुत-सी बातें सुनते हुए भी अनसुनी कर देती हैं, बहुत-सी घटनायें देखकर भी अनदेखी कर देती हैं और बहुत कुछ समझाने के बावजूद उसे समझना नहीं चाहतीं और उसके लिए मजबूरन आप एक मजबूत-सा कवच अपने चारों ओर बना लेती हैं, ताकि कोई सच्ची और सहज भावना कहीं से फूट न पड़े । आपकी संवेदनशीलता, आपका स्पष्ट दृष्टिकोण, आपका असली स्वभाव, सच्चाई, सरलता, आत्मविश्वास सब कुछ उस कवच के अन्दर रह जाता है । बाहर होती है तो बस एक चैकस सतर्कता, कहीं से असलियत न दिख जाये वह चिंता, बस । ऐसे में आपका व्यवहार कभी सहज हो ही नहीं सकता । इस तरह आत्मसंयम के नाम पर आप अपने ऊपर जुल्म करती हैं । अपने व्यक्तित्व को सिर्फ खोखला तथा कमजोर बनाती हैं । आपकी यह तटस्थता और उदासीनता की नीति अन्ततः संबंधों को तोड़ने में ही सहायक होती है, जोड़ने में नहीं । इसीलिए यदि आपको कोाई बात बुरी लगती है, तो तुरन्त गुस्सा कीजिये, ताकि आप बाद में खुश रह सकें । भले ही लोग आपको गंवार या जाहिल कहें ।

आवेग और उत्तेजना भरे गुस्से से कोई फायदा नहीं

गुस्सा करने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है, कि आप गुस्से में घर के बर्तन तोड़ ड़ालें, या खाना उठा कर फेंक दें, जिससे नाराज हों, उससे बोलना ही छोड़ दें, या गुस्से में घर छोड़कर चली जायें या फिर स्वयं  भी कोई ऐसा कुछ करने लगें, जिससे आपको जलाने वाला भी खुद भी गुस्से की आग में जलने लगे । इस तरह के आवेग और उत्तेजना भरे गुस्से से कोई फायदा नहीं है । इससे एक तो आपके मन की बात मन में ही रह जायेगी । दूसरे लोग आपसे दूर भागने लगेंगें और आप कई मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों जैसे अल्सर, हाई ब्लड़ प्रेशर और सिर दर्द आदि की शिकार हो जायेंगीं । ऐसे गुस्से को हम निरर्थक गुस्सा कह सकते हैं ।

कहा गया है – ‘क्रोध मूर्खता से आरम्भ होता है और पश्चाताप पर समाप्त होता है ।’ शायद यह उक्ति निरर्थक गुस्से के लिए सही बैठे मगर यदि गुस्सा बुद्धिमानी से शुरू किया जाये और सही ढंग से किया जाये तो निश्चय ही पश्चाताप नहीं, बल्कि एक आत्मसंतोष की निश्चिंतता की ओर एक आंतरिक खुशी की अनुभूति होगी ।

गुस्सा करने का सही ढंग

आइये, अब ‘मूल मंत्र’ की तरफ बढ़ें और देखें कि गुस्सा करने का ‘सही ढंग’ क्या है ?

सबसे मुख्य बात तो यह है कि जब भी कोई अनचाही स्थिति पैदा हो और आपको गुस्सा आ जाये तो उसे जाहिर करने से पहले यह सोच लीजिए कि आपके गुस्सा होने के चार उद्देश्य हैं –

(1)    आपको जो मानसिक आघात लगा है, जो दुख हुआ है, दसरे को उसका पूरा-पूरा एहसास कराना।

(2)    इस दुःखदायी स्थिति को बदलना ।

(3)    ऐसी कष्टप्रद घटनाओं को या बातों को आगे होने से रोकना, जिनसे आपको दुख पहुंचा था ।

(4)    अपने संपर्क और संबंधों को अधिक घनिष्ठ बनाना ।

दूसरी बात यह कि जब आपको किसी पर गुस्सा आये तो उसे व्यक्त करने से पहले स्वयं से ये प्रश्न जरूर करें –

(1)    आप क्यों नाराज हैं ?

(2)    आप क्या चाहती हैं ?

(3)    आप क्या करें कि जिससे आपका दुख भी दूर हो जाये और गुस्सा भी शांत हो जाये ?

यह सब सोच लेने के बाद,

बिना कोई भूमिका बांधे आप अपनी बात शुरू कर दीजिए । जो कुछ भी आपके मन में है और जो कुछ भी आप चाहती हैं, एकदम साफ-साफ कह दीजिए । उदाहरणार्थ आपके पति रोज देर से घर आते हैं  या  शराब  पीकर घर आते हैं और आपको उनकी यह हरकत कतई पसन्द नहीं है तो आप सीधे-सीधे उनसे कहिए कि तुम्हारी यह आदत मुझे पसन्द नहीं है, तुम्हें नशे में देखकर मुझे तुमसे चिढ़ होने लगती है, मुझे तुम नाली के कीड़े जैसे गंदे दिखने लगते हो आदि-आदि । मतलब यह कि आपके मन में जो विचार हैं, उन्हें बिना किसी बनावट के ज्यों-के-त्यों दोहरा दीजिए चाहे भाषा कितनी ही कटु क्यों न हो । जाहिर है पति भी ताबड़तोड़ जवाब देंगें । हो सकता है वह यह भी कह दें । ‘‘तुम हो किस खेत की मूली ? तुम्हारी परवाह ही कौन करता है ?’’ ऐसे में आप जरा भी विचलित न हों और रोएं भी नहीं, अपनी बात पर अड़ी रहें, कह दें ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, मेरी चिंता तुम्हें करनी ही पड़ेगी ।’’ और आप ऐलान कर दीजिए, ‘‘आइंदा चाहे जो भी हो मैं यह सब कतई बर्दाश्त नहीं करूँगीं ।’’ संभव है, इसके बाद आपके पति बड़बड़ाते हुए या पैर पटकते हुए या गालियां देते हुए बाहर निकल जायें । अगर आप अपनी बात पूरी कह चुकी हैं, कोई और शिकायत, कडुवाहट मन में अटकी नहीं रह गयी है, तो उन्हें जाने दीजिए । पीछे मत पड़िये यह न सोचिये कि निर्णय तुरन्त हो जायेगा । उन्हें थोड़ा समय दीजिए, हो सकता है गुस्सा ठंडा होने पर वह स्वयं आपसे माफी मांगें या थोड़े दिन बाद आप स्वयं ही उनके व्यवहार में मनचाहा बदलाव महसूस करें और आपकी नाराजगी दूर हो जाये तथा आपके आपसी संबंध पहले से अधिक घनिष्ठ हो जायें ।

गुस्सा करते समय इन बातों का ध्यान रखिये -

(1)    व्यंग्य और तानों का प्रयोग करने के स्थान पर सादी भाषा में गुस्सा प्रकट करें ।

(2)    सामने वाले को नीचा दिखाने की कोशिश न करें ।

(3)    उसकी बातों पर विश्वास न करें और उसे अपनी सफाई देने का पूरा मौका दें ।

(4)    उसको सजा देने के इरादे से या उसे चिढ़ाने के लिए बेतुकी बातें न करें ।

(5)    अगर आप गुस्सा करती हैं तो दूसरे का गुस्सा सहन करना भी सीखिये । और यदि आप इतने गुस्से में हैं कि आप किसी बात का ध्यान नहीं रख सकतीं तो फौरन गुस्सा न कीजिए, उठकर अपने कमरे में चली जायें, रेडियो या टी.वी. खोलकर बैठ जायें या संगीत सुनने लगें या फिर घर से बाहर कहीं चली जायें और जब गुस्सा थोड़ा शांत हो जाये तो ऊपर लिखे ढंग से अपना गुस्सा व्यक्त करने की कोशिश करें, तभी आपका गुस्सा कारगर होगा ।

एक खास बात और समझ लीजिए

गुस्सा होने के बाद आपको कभी शर्मिन्दा नहीं होना चाहिए, न ही आप अपने गुस्से के लिए माफी मांगें । आपको यह आत्मग्लानि बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि मैंने गलत किया, मैं होश खो बैैठी, मुझे अपने पर काबू नहीं रहा या ऐसा नहीं होना चाहिए था, बल्कि आपको यह विश्वास और संतोष होना चाहिए कि जो कुछ आपने किया वह स्थिति को देखते हुए सर्वथा उचित था और यही होना भी चाहिए था ।

अंत  में  हम  फिर  यही कहेंगें कि गुस्सा बड़े काम की चीज है । आपने सुना भी होगा जहां लड़ाई अधिक होती है, वहीं प्यार भी अधिक होता है । अगर आप चाहती हैं कि आपके आपसी संबंध हमेशा मधुर और घनिष्ठ बने रहें और रिश्तों के ये बंधन सिर्फ नाम के लिए नहीं, बल्कि सचमुच आपके लिए ‘‘आन्तरिक प्रसन्नता’’ का चिर स्त्रोत बने रहें तो गुस्सा करना सीखिये, क्योंकि जीवन को संतुलित रखने के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं है, गुस्सा भी बेहद जरूरी है ।

health, healthy, health tips,health news,health magazine,health websites,good health tips, health tips for women,health tip of the day,health information,health and fitness,kids health, diet,healthy eating,nutrition,how to lose weight,healthy food,   weight loss,how to lose weight fast,lose weight fast,diet plans,lose weight,weight loss pills,weight loss diet,best way to lose weight,weight loss tips,quick weight loss,low carb diet,weight loss programs,weight loss supplements,weight loss supplements,fat burner,extreme weigh loss,fat burning foods,diet pills,best weight loss pills,best diet pills for women