Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘काबिल’

Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘काबिल’

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फिल्म : काबिल
डायरेक्टर: संजय गुप्ता
स्टार कास्ट: रितिक रोशन, यामी गौतम, रोनित रॉय, रोहित रॉय
अवधि: 2 घंटा 19 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A

संजय गुप्ता के डायरेक्शन में पहली बार रितिक रोशन की फिल्म रिलीज हुई है. इसके प्रोड्यूसर राकेश रोशन हैं. राकेश रोशन ने अपने बेटे रितिक के लिए कहो ना प्यार है, कोई मिल गया, कृष, काइट्स जैसी फिल्में बनाई हैं. इनकी सफलता का प्रतिशत मिला-जुला है.

 

जानें फिल्म की कहानी 
ये कहानी है डबिंग आर्टिस्ट रोहन भटनागर (रितिक रोशन) की , जिसकी जिंदगी दिन में डबिंग स्टूडियो और रात को घर पर गुजरती है. रोहन की एक ही तमन्ना है कि उसको एक ऐसा हमसफ़र मिले जिसके साथ वो अपनी सारी जिंदगी गुजार सके. तभी रोहन की जिंदगी में सुप्रिया (यामी गौतम) की एंट्री होती है और रोहन के व्यक्तित्व को देखकर सुप्रिया काफी इंप्रेस होती है और दोनों शादी कर लेते हैं.

दोनों दिव्यांग होते हुए भी एक दूसरे के प्यार में खोये रहते हैं तभी अचानक एक दिन ऐसा आता है जब कॉर्पोरेटर माधवराव शेल्लार (रोनित रॉय) और अमित शेल्लार (रोहित रॉय ) की वजह से रोहन की जिंदगी से सुप्रिया हमेशा के लिए चली जाती है. इसका बदला लेने के लिए रोहन प्लान बनाता है और अंततः सच की जीत होती है.

– फिल्म की सिनोमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है जो कि संजय गुप्ता की फिल्मों की खासियत भी है.
– फिल्म में दिव्यांग के हिसाब से रिसर्च वर्क ठीक है, जैसे पैसों की समझ, सुनने की परख, खाना पकाना इत्यादि. साथ ही दिव्यांग इंसान की बदला लेने की प्लानिंग दिलचस्पी बनाए रखती है.

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Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘ रईस ‘

Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘ रईस ‘

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फिल्म: रईस
डायरेक्टर: राहुल ढोलकिया
स्टार कास्ट: शाहरुख खान, माहिरा खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी,  अतुल कुलकर्णी, आर्यन बब्बर
अवधि: 2 घंटा 22 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A

फिल्म ‘परजानिया’ के डायरेक्टर राहुल ढोलकिया ने इस बार 80 के दशक के दौर पर आधारित फिल्म ‘रईस’ बनाई है जिसमें पहली बार वो शाहरुख खान के साथ काम कर रहे हैं. इसके पहले राहुल ने ‘लम्हा’ और ‘मुम्बई कटिंग’ जैसी फिल्में भी बनाई हैं.

कहानी

यह कहानी 80 के दशक के गुजरात की है जहां स्कूल जाने वाला रईस (शाहरुख खान) और कबाड़ का काम करने वाली उसकी मां (शीबा चड्ढा) गरीबी की जिंदगी गुजर बसर करते हैं. हालांकि घर की ऐसी हालात देखकर पहले तो रईस देसी शराब का काम शुरू करता है लेकिन रेड पड़ने की वजह से काम में अड़चन आती है. फिर रईस अंग्रेजी शराब की दुकान पर (अतुल कुलकर्णी) का शागिर्द बन जाता है. दिमाग का तेज रईस एक वक्त के बाद खुद का धंधा शुरू करना चाहता है लेकिन इसके लिए उसका गुरु शर्त रखता है जिसके लिए रईस को 3 दिन का टाइम दिया जाता है.

रईस इस शर्त को पूरा करने के लिए मूसा भाई के पास जाता है. मूसा भाई, रईस की स्टाइल से इम्प्रेस हो जाता है और उसकी हेल्प भी करता है. फिर कहानी में कई मोड़ आते हैं, वापसी पर रईस खुद का शराब का धंधा शुरू कर देता है, फिर एस पी जयदीप अम्बालाल मजूमदार (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) की वजह से शराब व्यापारियों पर कार्यवाही की जाती है लेकिन रईस हमेशा बच निकलता है. अब डेयरिंग से भरी फिल्म के अंजाम को जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

क्यों देखें
शाहरुख खान की पॉवरपैक एक्टि‍ग और उसके साथ-साथ नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मौजूदगी फिल्म को काफी दिलचस्प बनाती है. साथ ही फिल्म के बाकी सह कलाकार जैसे मोहम्मद जीशान अयूब, अतुल कुलकर्णी इत्यादि ने भी बढ़िया काम किया है.
फिल्म के डायलॉग्स पहले से ही हिट हैं और जब भी वो फिल्म के दौरान आते हैं सीटियां और तालियां जरूर बजती हैं. ख़ास तौर पर शाहरुख के फैंस के लिए पूरा पैसा वसूल है.

फिल्म के लोकेशंस, सिनेमेटोग्राफी और बैकग्राउंड आपको 80 के दशक में ले जाकर बिठा ही देते हैं और फील भरपूर होती है.  एक्शन सीक्वेंस भी कमाल के हैं साथ ही लैला मैं लैला वाला गीत भी कहानी में अच्छा मोड़ लाता है. शाहरुख खान के डायलॉग्स के साथ साथ नवाजुद्दीन की ‘कोई भी काम लिखित में लेने’ की स्टाइल काफी फेमस होगी. शाहरुख ने किरदार को कड़क बनाने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रयास किया है जो स्क्रीन पर दिखाई देता है वहीँ नवाजुद्दीन सीरियस रोल में और भी जंचते हैं. खबरों के मुताबिक़ फिल्म का बजट लगभग 90 करोड़ बताया जा रहा है

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जिंदगी का एक अहम सस्पेंस है फिल्म डियर जिंदगी

जिंदगी का एक अहम सस्पेंस है फिल्म डियर जिंदगी

प्रमुख कलाकार- आलिया भट्ट, शाहरुख खान

निर्देशक- गौरी शिंदे

स्टार- साढ़े तीन 

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गौरी शिंदे की डायरेक्शन में बनी फिल्म डियर जिंदगी 25 नवंबर को रिलीज हो गई। अब गौरी अपने नए प्रोजेक्ट के साथ एक बार फिर से दर्शकों का एंटरटेनमेंट करने वाली हैं।

इस फिल्म की कहानी आज कल के यूथ की जिंदगी से जुडी हुई है। फिल्म में एक लड़की है कायरा। कायरा की जिंदगी में तीन लड़के आते हैं। लेकिन तीनों से उसका ब्रेकअप हो जाता है। अपनी जिंदगी को लेकर उसके जहन में कई सवाल होते हैं। अपनी इसी कश्मकश और जिंदगी की सवालों को सुलझाने की कोशिश में वह डॉक्टर जहांगीर खान से मिलती है। जहांगीर यानि जग्स उसे जिंदगी समझना और उसे इंजॉय करना सिखाते हैं।

अब फिल्म की कास्ट की बात करें तो फिल्म में शाहरुख खान और आलिया भट्ट के अलावा कुणाल कपूर, अंगद बेदी और अली जाफर हैं। शाहरुख खान फिल्म में एक कैमियो कर रहे हैं। ऐसा कैमियो जो थोड़ा सा एक्सटेंडेड है। शाहरुख और आलिया फिल्म के लिए एक फ्रेश पेयर हैं। भले ही दोनों का रोमांटिक एंगल नहीं है। लेकिन दोनों को साथ स्क्रीन पर देखना एक अच्छा एक्सपीरियस होगा।

शाहरुख ने बताया कि उन्होंने करियर में हमेशा अलग-अलग रोल करने की कोशिश की है। यह फिल्म इसी दिशा में एक कदम है। मैं यह सुनिश्चित नहीं कर पाया हूं कि मैं फिल्म के लिए स्टार वेहिकल की तरह काम करूंगा। लोग मेरी वजह से जाकर फिल्म देखेंगे। कई बार मैं सुनता हूं कि मुझे हटकर फिल्में करनी चाहिए। मैंने अपने करियर में वो सब भी किया है मैं और भी अलग फिल्में करना चाहता हूं। यह फिल्म इस दिशा में मेरा एक कदम है। आलिया के रोल के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, आलिया ने अपने करियर का अब तक का ऐसा रोल किया है जिससे हर लड़की खुद को रिलेट कर पाएगी।

 

फिल्म के कुछ डायलॉग्स पहले ही लोगों की जुबान पर हैं जैसे कि शाहरुख का आलिया को कहना, ‘तुम बेटर जोक्स मार सकती हो’ और दोनों के बीच की बातचीत पहले ही लोगों में फिल्म को लेकर एक्साइटमेंट बना चुकी है।

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Movie Review: ‘पीके’

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Genre: कॉमेडी ड्रामा

Director: राजकुमार हिरानी

रेटिंग-  4

कहानी

पीके  एक एलियन है। जब उसका यान धरती पर उतरता है और वह बाहर आता है, तो खुद को एक नई दुनिया में देखकर हैरत में पड़ जाता है। इसी दौरान पीके का लॉकेट (जिससे वह अपने ग्रह के संपर्क में रह सकता था) कोई चुरा लेता है। पीके अपने लॉकेट को ढूंढता है, लेकिन वह उसे नहीं मिलता। वह अपने लॉकेट को ढूंढते हुए  शहर में दाखिल होता है और यहाँ उसकी मुलाकात एक टीवी रिपोर्टर जगत जननी (अनुष्का शर्मा) से होती है । अपनी लॉकेट की तलाश करते हुए वह भोजपुरी भी सीख जाता है और इसी भाषा में संवाद करता है। वह व्यवसाय में तब्दील हो चुके धर्म से बंधक बन चुके भगवान को मुक्त कराने की बात करता है, जो लोगों को अटपटी लगती है। फिल्म मासूम पीके  के साथ मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ती है, जिसमें उसके साथ कुछ लोग जुड़ते चले जाते हैं। पीके की बातों का धीरे-धीरे लोगों पर असर पड़ता है। पीके कहता है कि धार्मिक आस्था पे सवाल नहीं उठाये जाते क्योंकि ये विश्वास का मामला है। कई बार तो इस मामले में तो कई दफा गोली भी खानी पड़ जाती है।

 

‘पीके’ में निर्देशक राजकुमार हिरानी ने धर्म और भगवान पर इतने सवाल उठाए हैं कि फिल्म खत्म होते-होते लगता है कि हमने भगवान की उस मूरत को धो के साफ कर दिया है, जिसे सालों से ढोंगी धर्माधिकारियों ने गन्दी कर मुनाफे का जरिया बनाया हुआ था। फिल्म यह दिखाने की सफल कोशिश करती है कि एक दूसरे ग्रह से आए हुए इन्सान और इस धरती के आम इन्सानों की तकलीफ कितनी मिलती-जुलती है।

एक्टिंग

पीके की भूमिका में आमिर खान ने अविस्मरणीय अभिनय किया है। बाकी कलाकारों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। अनुष्का शर्मा फिल्म में अच्छी लगती हैं और उनका किरदार जगत जननी ताजगी का अहसास करवाता है। संजय दत्त अनूठे लगे हैं।बोमन ईरानी और सौरभ शुक्ला बहुत मजेदार है और सुशान्त सिंह राजपूत बहुत फ्रेश लगते हैं।

 

 

फिल्‍म रिव्‍यू द एक्सपोज़

फिल्‍म रिव्‍यू  द एक्सपोज़

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कलाकार : हिमेश रेशमिया, सोनाली राउत, ज़ोया अफरोज़, हनी सिंह, अनंत महादेवन, आदिल हुसैन

निर्माता : विपिन रेशमिया

निर्देशक : अनंत नारायण महादेवन

गीत : समीर, शब्बीर अहमद संगीत: हिमेश रेश्मिया

मूवी टाइप : Thriller

कहानी:

ग्लैमर इंडस्ट्री की दो ऐक्ट्रेसेस- चांदनी (ज़ोया अफरोज) और ज़ारा (सोनाली राउत) की प्रफेशनल लड़ाई मीडिया की अक्सर सुर्खियों में रहती है। इत्तफाक से इन दोनों हिरोइनों की फिल्में रिलीज होने को तैयार है। चांदनी स्टारर ‘रीना मेरा नाम’ की टक्कर जारा की लीड भूमिका वाली फिल्म ‘उज्ज्वल शीतल निर्मल’ से होनी है। बॉक्स ऑफिस पर इन दोनों फिल्मों में से चांदनी स्टारर ‘रीना मेरा नाम’ को दर्शक और क्रिटिक्स ज्यादा पसंद करते हैं और इस फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स मिलता है। कुछ दिनों बाद इन दोनों की लड़ाई एक अवॉर्ड फंक्शन की पार्टी में कैट फाइट में बदल जाती है। इस पार्टी के बाद होटेल की चौथी मंजिल से गिरने की वजह से ज़ारा की मौत हो जाती है। हर कोई इस उधेड़बुन में लगा है कि क्या ज़ारा ने फिल्म न चल पाने की वजह से आत्महत्या तो नहीं कर ली! वहीं, कुछ लोग इसे हत्या का मामला मान रहे हैं और ऐसे लोगों के शक की सुई चांदनी की ओर जाती है। इस केस का एक खास गवाह ऐक्टर रवि कुमार (हिमेश रेशमिया) है, जो ज़ारा को दिल से प्यार करता है। ज़ारा की हत्या के शक की सुई डायरेक्टर सुब्बा राव (अनंत महादेवन), ज़ारा के एक्स बॉयफ्रेंड केनी दामनिया (हनी सिंह) के साथ-साथ और कई लोगों पर है।

ऐक्टिंग: इस बार हिमेश रेशमिया ने अपने किरदार को बस ठीक-ठाक निभाया है। हनी सिंह ने भी अपनी ओर से तो कुछ अच्छा करने की कोशिश की, लेकिन कम और लुक के मामले में वह अपने किरदार की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाए। हां, एक फिल्म डायरेक्टर के किरदार में अनंत महादेवन ने प्रभावित किया है। ज़ोया और सोनाली ने बस अपने किरदार को निभा भर दिया है।

डायरेक्शन: अनंत महादेवन डायरेक्टर की कमान ठीक से नहीं संभाल पाए। करीब दो घंटे की फिल्म का बड़ा हिस्सा उन्होंने किरदारों के बारे में ही लगा दिया। बिखरी हुई स्क्रिप्ट और कमजोर निर्देशन कहानी और किरदारों के साथ दर्शकों को पूरी तरह से जोड़ नहीं पाती। हां, अनंत ने कहानी के सस्पेंस को कुछ हद तक क्लाइमैक्स तक बनाए रखा है, लेकिन अगर आप जरा गौर से देखें, तो आप सस्पेंस पहले ही जान पाएंगे।

संगीत: रिलीज से पहले फिल्म के कई गाने यंगस्टर्स में हिट है। आइसक्रीम खाऊंगी, कश्मीर जाऊंगी, दर्द दिलों के कम हो जाते और है अपना दिल तो आवारा पहले से यंगस्टर्स की जुबां पर है।

क्यों देखें: अगर सिंगर हनी सिंह और हिमेश रेशमिया के जबर्दस्त फैन हैं, तो एक बार देख सकते हैं। लेकिन याद रहे, हमने इन दोनों को सिंगर कहा है, ऐक्टर नहीं!

 

‘शादी के साइड इफेक्ट्स’

‘शादी के साइड इफेक्ट्स’

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‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ 2006 में आई मल्लिका शेरावत और राहुल बोस की फिल्म ‘प्यार के साइड इफेक्ट्स’का सीक्वल है।  फिल्म का फर्स्ट पार्ट कोई बहुत ज्यादा खास कमाल नहीं दिखा पाया था।

फिल्म में प्यार और कमिटमेंट को लेकर बातें की गई थीं। आठ साल बाद उन्हीं किरदारों को लेकर ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ बनाई गई है। इसमें शादी के बाद एक कपल को किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, यह दिखाया गया है।

स्टारकास्ट बदल गई है। अब फिल्म में लीड रोल फरहान अख्तर और विद्या बालन प्ले कर रहे हैं। दोनों के किरदारों के नाम सिड और तृषा है। दोनों शादी कर लेते हैं। शादी के कुछ समय बाद तृषा की मां बनना चाहती है मगर सिड इसके लिए तैयार नहीं है। वह अपने करियर पर फोकस करना चाहता है।

दोनों इस बात पर झगड़ने लगते हैं फिर सिड मान जाता है। तृषा मां बन जाती है, दोनों इस नई जिम्मेदारी को संभालते हुए कैसे आगे बढ़ते हैं। उनकी लाइफ में नए मेहमान के आने से क्या परिवर्तन आते हैं, इसे फिल्म में मजाकिया अंदाज में दिखाया गया है।

 

मूवी रिव्यूः जय हो

मूवी रिव्यूः जय हो

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फिल्म जय हो तेलुगू की सुपरहिट फिल्म ‘स्टालिन’ का रीमेक है। फिल्म में आम आदमी की सता में बैठे भ्रष्ट, स्वार्थी नेताओं से जंग को मुददा बनाया गया है, ऐसे में सल्लू मियां की यह फिल्म कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को मुददा बनाकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठी पार्टी ‘आप’ को कुछ फायदा पहुंचा सकती है। सलमान की पिछली कुछ सुपरहिट फिल्में वॉन्टेड, दबंग, रेडी, बॉडीगार्ड, एक था टाइगर पूरी तरह उन्हीं के कंधों पर टिकी ‘वन मैन आर्मी’ टाइप फिल्में थी, लेकिन इस बार सलमान ने इस फिल्म में अपने साथ दो दर्जन से ज्यादा स्टार्स को कहानी का हिस्सा बनाया है। अपनी इस होम प्रॉडक्शन कंपनी की फिल्म में सलमान बार-बार कहते नजर आते हैं, देश सेवा के लिए जरूरी नहीं है कि सेना में भर्ती हुआ जाए या नेता बना जाए। इसके बिना भी आप देश के लिए कुछ अलग और नया काम कर सकते हैं। इतना ही नहीं सलमान ने ‘जय हो’ के माध्यम से अपने फैंस को मेसेज दिया है अगर कभी कोई शख्स आपकी मदद करें तो उसे ‘थैंक्यू’ कहने के बजाए उसके साथ वादा करें कि आप भी भविष्य में 3 और लोगों की मदद करेंगे। सलमान कहते हैं कि अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में इससे एक अच्‍छी चेन चलने लगेगी जिससे देश और समाज को हम बेहतर बनाया जा सकता है। लंबे गैप के बाद पर्दे पर तब्बू, डैनी और नादिरा बब्बर जैसे मंझे हुए स्टार्स के साथ कई अनुभवी कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद सलमान खान जब भी स्क्रीन पर आए हॉल तालियों और सीटियों की आवाज से गुंज उठा।

कहानी:

 हेडक्वॉर्टर का आदेश न मानने की वजह से सेना से निकाला जा चुका जय अग्निहोत्री (सलमान खान) अब कार मकैनिक बन चुका है। एक ऐसा कार मकैनिक जो सिर्फ खराब कारों को ही ठीक नहीं करता बल्कि अपनी राह से भटकती युवा पीढ़ी को भी ठीक करना चाहता है। मौजूदा सिस्टम में तेजी से पनपते करप्शन और सड़क पर भूख से कराहते मासूमों की चीखें सुन जय ऐसे सिस्टम से लड़ने का फैसला करता है। गुंडों की कैद में फंसी लड़की को जय उनसे छुड़ाता है, फोन पर लड़कियों को हर वक्त परेशान करने वालों से निपटता है। हर किसी की मदद करने और जुल्म-करप्शन के खिलाफ जय का लड़ना स्टेट के भ्रष्ट होम मिनिस्टर दशरथ सिंह पाटील (डैनी) को जरा भी पसंद नहीं। ऐसे में जब जय के पास पाटील की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा पहुंचता है उस वक्त वह उसके और मौजूदा सिस्टम के खिलाफ आम आदमी की जंग की शुरुआत करता है। जय की इस जंग के बाद भ्रष्ट राजनेता और करप्शन में जकड़े पुलिस के भ्रष्ट अफसर शहर के असामाजिक तत्वों को जय की फैमिली को प्रताड़ित करने के लिए भेजते है। दरअसल, जय की मां (नादिरा बब्बर) और उसकी बहन गीता (तब्बू) भी उसकी इस जंग में हर कदम पर उसके साथ है। हां, कहानी में सेक्सी हीरोइन की भरपाई के लिए पिंकी (डेजी शाह) भी हैं जो सलमान के साथ ‘तेरे नैना मार डालेंगे’ वाला गाने के अलावा चंद और सीन्स में भी ब्यूटी परोसती नजर आती हैं।

डायरेक्शन: 

सोहेल खान की कहानी और किरदारों पर पकड़ कुछ कमजोर नजर आती है। ऐसा लगता है सोहेल ने अपना सारा ध्यान भाई सलमान के किरदार को बेहतर से बेहतरीन बनाने में लगाया। अगर सोहेल इस प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले स्क्रिप्ट को दुरूस्त बनाने के लिए कुछ वक्त और लगाते तो कहानी और किरदार प्रभावशाली बन सकते थे। ऐसा लगता है सोहेल ने भाई साहब को कैमरे के सामने कुछ भी करने की छूट दी तो बाकी काम कोरियोग्राफर, ऐक्शन डायरेक्टर ने पूरा कर दिया। फैंस को खुश करने के लिए फिल्म में कॉमिडी, इमोशन का तड़का लगाया गया है।

संगीत:

बेशक फिल्म का संगीत म्यूजिक लवर्स में ज्यादा हिट नहीं हो पाया। ‘अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता’, सलमान-डेजी पर फिल्माया ‘तेरे नैना’ के अलावा फोटोकॉपी सॉन्ग संगीत प्रेमियों में पहले से हिट है।

क्यों देखें:

अगर इस बार फिर वॉन्टेड, दबंग और बॉडीगार्ड वाले सल्लू को देखने जाएंगे तो अपसेट होंगे क्योंकि सलमान इस बार पूरी तरह से बदले लुक में कैमरे पर कॉमन मैन की तरह नजर आते हैं। फर्क बस इतना है इस कॉमनमैन के सिक्स पैक है और एक साथ सैंकडों गुंडों को मार गिराने की जादुई ताकत। कुछ नया और टोटली टाइमपास ऐंटरटेनमेंट मूवी देखने जा रहे है तो ‘जय हो’ शायद निराश करे क्योंकि सलमान ऐसा नहीं कर पाए।

 

मूवी रिव्यूः डेढ़ इश्किया

मूवी रिव्यूः डेढ़ इश्किया

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यश राज कैंप की ‘आजा नच ले’ के लंबे अर्से बाद इस बार जब माधुरी पर्दे पर नजर आईं तो उनकी मौजूदगी ने यंग डायरेक्टर चौबे की इस फिल्म में काफी हद तक देसीपन घोलकर रख दिया। यकीनन, अगर विद्या बालन की इश्किया के साथ इस फिल्म को ऐक्टिंग , डायरेक्शन, संगीत और संवादों की कसौटी पर रखकर परखा जाए तो आप इसे पिछली फिल्म से कहीं ज्यादा बढ़िया पाएंगे, लेकिन फर्क बस इतना है कि चौबे साहब ने इस बार अपनी फिल्म में ऐसे चालू मसालों को परोसने से काफी हद तक परहेज किया जिन्हें प्रड्यूसर और डिस्ट्रिब्यूटर टिकट खिड़की पर अच्छी आमदनी की गारंटी मानते है।

हां, तीन साल पहले आई इश्किया में अरशद और विद्या के रिश्तों में सेक्स अपील की ज्यादा गुंजाइश रखी गई, तो खालूजान के किरदार को ज्यादा बोल्ड बनाकर पेश किया गया, ऐसा इस बार नहीं है। अगर स्क्रिप्ट की बात करें, तो इसका पिछली फिल्म से कुछ खास लेना-देना नहीं है। हां, फिल्म में नजर आई खालूजान और बब्बन की जोड़ी जरूर यहां अपने पिछले लुक के साथ मौजूद है, लेकिन इस बार इन दोनों के किरदार बेशक पहले जैसे नजर आए लेकिन खालूजान यानी नसीर साहब का अंदाज काफी हद तक बदला नजर आता है।

यंग डायरेक्टर अभिषेक चौबे की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी इश्किया को हर क्लास की कसौटी पर खरी उतरने वाली फिल्म बनाने का मोह त्यागकर इस बार कुछ नया करने की कोशिश की है, यही इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है।

कहानी: नवाबी बैकग्राउंड और पुराने ढर्रे की कहानी होने के बावजूद यह बेहद असरदार है। खालू (नसीरूदीन शाह) और बब्बन ( अरशद वारसी) तीन साल बाद भी इस बार भी नहीं बदले है। इस बार खालूजान महमूदाबाद के एक पुराने भव्य महल में पहुंचते हैं, इस महल में खूबसूरत बेगम पारा (माधुरी दीक्षित) ने एक खुला मुशायरा आयोजित किया हैं। बेगम पारा के इस महल में खालूजान भी खुद को नवाब बताकर दाखिल हो जाते हैं। इस बार उनका मकसद कोई छोटा-मोटा हाथ मारने की बजाय महल की तिजोरी में रखी दौलत को लूटना है। खालूजान खुद को शायर बताते हैं और मुशायरे में शामिल हो जाते हैं।

मुशायरे में अपनी शायरी से बेगम पारा को प्रभावित करने वाले खालूजान साहब खुद बेगम पारा से प्यार करने लगते हैं। बेगम पारा का शौहर अब इस दुनिया में नहीं हैं, इस लिए बेगम को अब अपने लिए जीवनसाथी चाहिए। बेगम पारा इसकी वजह भी अपने मरहूम पति की आखिरी ख्वाहिश बताती है। पारा कहती हैं कि नवाब साहब ने मरने से पहले उनसे ऐसा वचन लिया था। इसी मुशायरे के दौरान खालूजान देखते हैं कि यहां बब्बन मियां भी पहुंच चुके हैं। महल में आने के बाद बब्बन मियां को बेगम साहिबा खासमखास नौकरानी मुनिया (हुमा कुरैशी) से इश्क हो जाता है।

ऐक्टिंग: पूरी फिल्म नसीरुद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित पर टिकी है। पूरी फिल्म में इन दोनों ने गजब अभिनय किया है। अगर आप माधुरी के फैन हैं तो आपके लिए इस फिल्म में बहुत कुछ है। नसीर साहब ने अपने नवाबी अवतार वाले खालूजान का किरदार पूरी परफेक्शन के साथ किया है। अरशद वारसी और नसीर की केमिस्ट्री खूब जमती है। खालूजान और बब्बन मियां के ज्यादातर सीन फिल्म की हैं।

डायरेक्शन: अभिषेक चौबे ने इस फिल्म को यकीनन अपनी पिछली फिल्म इश्किया के मुकाबले कहीं ज्यादा दमदार बनाया है। नसीर , अरशद, माधुरी , हुमा , के अलावा विजय राज सहित लगभग सभी ऐक्टर्स को उन्होंने अपना टैलंट दिखाने का मौका दिया। इस मौके को यकीनन लीड कलाकारों के अलावा विजय राज ने सबसे ज्यादा कैश किया। हुमा की तारीफ करनी होगी, माधुरी के साथ लगभग हर सीन में वह आत्मविश्वास के साथ नजर आईं।

संगीत: विशाल भारद्वाज का संगीत इस बार माहौल और किरदारों पर सौ फीसदी फिट है। बेशक , फिल्म का कोई गाना आपकी जुबां पर ना आ पाए लेकिन हॉल में आपके पांवों को थिरकने का मौका जरूर देता है।

क्यों देखें: अगर आप कुछ नया देखने के शौकीन हैं, तो डेढ़ इश्किया आपको अपसेट नहीं करेगी। यूपी की लोकेशन, बेहतरीन संवाद , उर्दू जुबान का फिल्म में कुछ ज्यादा ही यूज हुआ, सो यंगस्टर्स की कसौटी पर बेशक फिल्म सौ फीसदी खरी ना उतर पाए। हां, अगर आप इस बार पहले से ज्यादा बोल्ड सीन देखने की चाह लेकर थिएटर जा रहे हैं, तो निराश होंगे।