मूवी रिव्यूः डेढ़ इश्किया

मूवी रिव्यूः डेढ़ इश्किया

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यश राज कैंप की ‘आजा नच ले’ के लंबे अर्से बाद इस बार जब माधुरी पर्दे पर नजर आईं तो उनकी मौजूदगी ने यंग डायरेक्टर चौबे की इस फिल्म में काफी हद तक देसीपन घोलकर रख दिया। यकीनन, अगर विद्या बालन की इश्किया के साथ इस फिल्म को ऐक्टिंग , डायरेक्शन, संगीत और संवादों की कसौटी पर रखकर परखा जाए तो आप इसे पिछली फिल्म से कहीं ज्यादा बढ़िया पाएंगे, लेकिन फर्क बस इतना है कि चौबे साहब ने इस बार अपनी फिल्म में ऐसे चालू मसालों को परोसने से काफी हद तक परहेज किया जिन्हें प्रड्यूसर और डिस्ट्रिब्यूटर टिकट खिड़की पर अच्छी आमदनी की गारंटी मानते है।

हां, तीन साल पहले आई इश्किया में अरशद और विद्या के रिश्तों में सेक्स अपील की ज्यादा गुंजाइश रखी गई, तो खालूजान के किरदार को ज्यादा बोल्ड बनाकर पेश किया गया, ऐसा इस बार नहीं है। अगर स्क्रिप्ट की बात करें, तो इसका पिछली फिल्म से कुछ खास लेना-देना नहीं है। हां, फिल्म में नजर आई खालूजान और बब्बन की जोड़ी जरूर यहां अपने पिछले लुक के साथ मौजूद है, लेकिन इस बार इन दोनों के किरदार बेशक पहले जैसे नजर आए लेकिन खालूजान यानी नसीर साहब का अंदाज काफी हद तक बदला नजर आता है।

यंग डायरेक्टर अभिषेक चौबे की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी इश्किया को हर क्लास की कसौटी पर खरी उतरने वाली फिल्म बनाने का मोह त्यागकर इस बार कुछ नया करने की कोशिश की है, यही इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है।

कहानी: नवाबी बैकग्राउंड और पुराने ढर्रे की कहानी होने के बावजूद यह बेहद असरदार है। खालू (नसीरूदीन शाह) और बब्बन ( अरशद वारसी) तीन साल बाद भी इस बार भी नहीं बदले है। इस बार खालूजान महमूदाबाद के एक पुराने भव्य महल में पहुंचते हैं, इस महल में खूबसूरत बेगम पारा (माधुरी दीक्षित) ने एक खुला मुशायरा आयोजित किया हैं। बेगम पारा के इस महल में खालूजान भी खुद को नवाब बताकर दाखिल हो जाते हैं। इस बार उनका मकसद कोई छोटा-मोटा हाथ मारने की बजाय महल की तिजोरी में रखी दौलत को लूटना है। खालूजान खुद को शायर बताते हैं और मुशायरे में शामिल हो जाते हैं।

मुशायरे में अपनी शायरी से बेगम पारा को प्रभावित करने वाले खालूजान साहब खुद बेगम पारा से प्यार करने लगते हैं। बेगम पारा का शौहर अब इस दुनिया में नहीं हैं, इस लिए बेगम को अब अपने लिए जीवनसाथी चाहिए। बेगम पारा इसकी वजह भी अपने मरहूम पति की आखिरी ख्वाहिश बताती है। पारा कहती हैं कि नवाब साहब ने मरने से पहले उनसे ऐसा वचन लिया था। इसी मुशायरे के दौरान खालूजान देखते हैं कि यहां बब्बन मियां भी पहुंच चुके हैं। महल में आने के बाद बब्बन मियां को बेगम साहिबा खासमखास नौकरानी मुनिया (हुमा कुरैशी) से इश्क हो जाता है।

ऐक्टिंग: पूरी फिल्म नसीरुद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित पर टिकी है। पूरी फिल्म में इन दोनों ने गजब अभिनय किया है। अगर आप माधुरी के फैन हैं तो आपके लिए इस फिल्म में बहुत कुछ है। नसीर साहब ने अपने नवाबी अवतार वाले खालूजान का किरदार पूरी परफेक्शन के साथ किया है। अरशद वारसी और नसीर की केमिस्ट्री खूब जमती है। खालूजान और बब्बन मियां के ज्यादातर सीन फिल्म की हैं।

डायरेक्शन: अभिषेक चौबे ने इस फिल्म को यकीनन अपनी पिछली फिल्म इश्किया के मुकाबले कहीं ज्यादा दमदार बनाया है। नसीर , अरशद, माधुरी , हुमा , के अलावा विजय राज सहित लगभग सभी ऐक्टर्स को उन्होंने अपना टैलंट दिखाने का मौका दिया। इस मौके को यकीनन लीड कलाकारों के अलावा विजय राज ने सबसे ज्यादा कैश किया। हुमा की तारीफ करनी होगी, माधुरी के साथ लगभग हर सीन में वह आत्मविश्वास के साथ नजर आईं।

संगीत: विशाल भारद्वाज का संगीत इस बार माहौल और किरदारों पर सौ फीसदी फिट है। बेशक , फिल्म का कोई गाना आपकी जुबां पर ना आ पाए लेकिन हॉल में आपके पांवों को थिरकने का मौका जरूर देता है।

क्यों देखें: अगर आप कुछ नया देखने के शौकीन हैं, तो डेढ़ इश्किया आपको अपसेट नहीं करेगी। यूपी की लोकेशन, बेहतरीन संवाद , उर्दू जुबान का फिल्म में कुछ ज्यादा ही यूज हुआ, सो यंगस्टर्स की कसौटी पर बेशक फिल्म सौ फीसदी खरी ना उतर पाए। हां, अगर आप इस बार पहले से ज्यादा बोल्ड सीन देखने की चाह लेकर थिएटर जा रहे हैं, तो निराश होंगे।