रियल लाइफ जलपरियां

रियल लाइफ जलपरियां

MERMAID

आपने बचपन में जलपरियों को लेकर कई किस्से और कहानियां पढी और सुनी होगी। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि असल में जलपरियां होती है या नहीं। लेकिन आज आपको जलपरी को लेकर एक जानकारी देने जा रहे है। जानकारी यह है कि अब आप भी जलपरी बन सकते है। जी हां, आप बिल्कुल सही पढ रहे है। इन दिनों अमेरिका में कुछ लोग सीक्रेटली जलपरी बनने की ओर अग्रसर हो रहे है। ये कम्युनिटी 3,500 डॉलर (37 लाख) खर्च करके खुद को जलपरी बनाने के पीछ जुटे हैं।

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बिकती है दुल्हन खरीदोगे

बिकती है दुल्‍हन खरीदोगे

bride Market

आमतौर पर हम बाजार अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए जाते हैं लेकिन, क्या आप यह सोच सकते हैं कि किसी बाजार में दुल्हन भी बिकती हो। हमने बाजार में दुल्हन की लिबाज में बिकती गुड़िया देखी हैं। लेकिन जब आपको ये पता चले की एक ऐसी जगह है जहां जीती जागती लड़कियां दुल्हन के लिबाज में बिकती है तो कितना आश्चर्य होगा। लेकिन ये बात सच है जहां दुल्हनें बिकती है, बोली लगती है और लोग दुल्हनों की वाजिब कीमत चुकाकर उन्हें ले जाते हैं।

यूरोप के बुलगारिया में स्टारा जागोर नामक जगह है जहां पर दुल्हनों का बाजार लगता है।साल में 3 बार दुल्हनों का बाजार सजता है। यहां लड़कियां अच्छी तरह से तैयार होकर बाजार में आती हैं। वो बाकाया सज धज कर एक दुल्हन की तरह दिख रही होती हैं।

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लव स्प्रे, खिंची चली आएंगी गर्लफ्रेंड

लव स्प्रे, खिंची चली आएंगी गर्लफ्रेंड

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अगर गर्लफ्रेंड करीब आने घबराती है है तो अब वशीकरण और जादू-टोना जैसे टोटके करने की जरूरत नहीं क्योंकि अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा स्प्रे तैयार किया है जिसे सूंघते ही महिलाएं पुरुषों की ओर आकर्ष‍ित हो जाएंगी. इस स्प्रे में ‘लव हॉर्मोन’ ऑक्सीटोसि‍न को सिंथेटिक रूप में डाला गया है. जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके प्रयोग में यह सामने आया है कि इस स्प्रे को सूंघते ही महिलाएं अपने साथियों को 15 फीसदी अधिक आकर्षक मानने लगीं.

 खुशबू से अट्रैक्ट होंगी महिलाएं :

वैज्ञानिकों ने इस स्प्रे को तैयार किया है, जिसकी खुशबू से महिलाएं पुरुषों की तरफ अट्रैक्ट होने लगती हैं. इस स्प्रे में लव हॉर्मोन ऑक्सीटोसिन को सिंथेटिक रूप में डाला गया है.

 सिंटोसिनन सिंथेटिक तत्व :

इस स्प्रे में सिंटोसिनन सिंथेटिक तत्व डाला गया है जो ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन से बनाया गया है. आपको पता होगा कि ये हार्मोन बॉडी में बनने पर प्यार और आकर्षण पैदा होता है. यही हार्मोन लगाव और प्रेम पैदा करने में खास भूमिका निभाता है.

 15 प्रतिशत ज्यादा आकर्षक लगे साथी :

शोध में 20 से 29 साल की 46 महिला प्रतिभागियों को शामिल किया गया. जब ये स्प्रे उन्होंने सूंघा, तो उन्हें उनके साथी पहले की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा आकर्षक लगे.

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Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘काबिल’

Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘काबिल’

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फिल्म : काबिल
डायरेक्टर: संजय गुप्ता
स्टार कास्ट: रितिक रोशन, यामी गौतम, रोनित रॉय, रोहित रॉय
अवधि: 2 घंटा 19 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A

संजय गुप्ता के डायरेक्शन में पहली बार रितिक रोशन की फिल्म रिलीज हुई है. इसके प्रोड्यूसर राकेश रोशन हैं. राकेश रोशन ने अपने बेटे रितिक के लिए कहो ना प्यार है, कोई मिल गया, कृष, काइट्स जैसी फिल्में बनाई हैं. इनकी सफलता का प्रतिशत मिला-जुला है.

 

जानें फिल्म की कहानी 
ये कहानी है डबिंग आर्टिस्ट रोहन भटनागर (रितिक रोशन) की , जिसकी जिंदगी दिन में डबिंग स्टूडियो और रात को घर पर गुजरती है. रोहन की एक ही तमन्ना है कि उसको एक ऐसा हमसफ़र मिले जिसके साथ वो अपनी सारी जिंदगी गुजार सके. तभी रोहन की जिंदगी में सुप्रिया (यामी गौतम) की एंट्री होती है और रोहन के व्यक्तित्व को देखकर सुप्रिया काफी इंप्रेस होती है और दोनों शादी कर लेते हैं.

दोनों दिव्यांग होते हुए भी एक दूसरे के प्यार में खोये रहते हैं तभी अचानक एक दिन ऐसा आता है जब कॉर्पोरेटर माधवराव शेल्लार (रोनित रॉय) और अमित शेल्लार (रोहित रॉय ) की वजह से रोहन की जिंदगी से सुप्रिया हमेशा के लिए चली जाती है. इसका बदला लेने के लिए रोहन प्लान बनाता है और अंततः सच की जीत होती है.

– फिल्म की सिनोमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है जो कि संजय गुप्ता की फिल्मों की खासियत भी है.
– फिल्म में दिव्यांग के हिसाब से रिसर्च वर्क ठीक है, जैसे पैसों की समझ, सुनने की परख, खाना पकाना इत्यादि. साथ ही दिव्यांग इंसान की बदला लेने की प्लानिंग दिलचस्पी बनाए रखती है.

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Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘ रईस ‘

Film Review: बदले की इमोशनल कहानी है ‘ रईस ‘

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फिल्म: रईस
डायरेक्टर: राहुल ढोलकिया
स्टार कास्ट: शाहरुख खान, माहिरा खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी,  अतुल कुलकर्णी, आर्यन बब्बर
अवधि: 2 घंटा 22 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A

फिल्म ‘परजानिया’ के डायरेक्टर राहुल ढोलकिया ने इस बार 80 के दशक के दौर पर आधारित फिल्म ‘रईस’ बनाई है जिसमें पहली बार वो शाहरुख खान के साथ काम कर रहे हैं. इसके पहले राहुल ने ‘लम्हा’ और ‘मुम्बई कटिंग’ जैसी फिल्में भी बनाई हैं.

कहानी

यह कहानी 80 के दशक के गुजरात की है जहां स्कूल जाने वाला रईस (शाहरुख खान) और कबाड़ का काम करने वाली उसकी मां (शीबा चड्ढा) गरीबी की जिंदगी गुजर बसर करते हैं. हालांकि घर की ऐसी हालात देखकर पहले तो रईस देसी शराब का काम शुरू करता है लेकिन रेड पड़ने की वजह से काम में अड़चन आती है. फिर रईस अंग्रेजी शराब की दुकान पर (अतुल कुलकर्णी) का शागिर्द बन जाता है. दिमाग का तेज रईस एक वक्त के बाद खुद का धंधा शुरू करना चाहता है लेकिन इसके लिए उसका गुरु शर्त रखता है जिसके लिए रईस को 3 दिन का टाइम दिया जाता है.

रईस इस शर्त को पूरा करने के लिए मूसा भाई के पास जाता है. मूसा भाई, रईस की स्टाइल से इम्प्रेस हो जाता है और उसकी हेल्प भी करता है. फिर कहानी में कई मोड़ आते हैं, वापसी पर रईस खुद का शराब का धंधा शुरू कर देता है, फिर एस पी जयदीप अम्बालाल मजूमदार (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) की वजह से शराब व्यापारियों पर कार्यवाही की जाती है लेकिन रईस हमेशा बच निकलता है. अब डेयरिंग से भरी फिल्म के अंजाम को जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

क्यों देखें
शाहरुख खान की पॉवरपैक एक्टि‍ग और उसके साथ-साथ नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मौजूदगी फिल्म को काफी दिलचस्प बनाती है. साथ ही फिल्म के बाकी सह कलाकार जैसे मोहम्मद जीशान अयूब, अतुल कुलकर्णी इत्यादि ने भी बढ़िया काम किया है.
फिल्म के डायलॉग्स पहले से ही हिट हैं और जब भी वो फिल्म के दौरान आते हैं सीटियां और तालियां जरूर बजती हैं. ख़ास तौर पर शाहरुख के फैंस के लिए पूरा पैसा वसूल है.

फिल्म के लोकेशंस, सिनेमेटोग्राफी और बैकग्राउंड आपको 80 के दशक में ले जाकर बिठा ही देते हैं और फील भरपूर होती है.  एक्शन सीक्वेंस भी कमाल के हैं साथ ही लैला मैं लैला वाला गीत भी कहानी में अच्छा मोड़ लाता है. शाहरुख खान के डायलॉग्स के साथ साथ नवाजुद्दीन की ‘कोई भी काम लिखित में लेने’ की स्टाइल काफी फेमस होगी. शाहरुख ने किरदार को कड़क बनाने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रयास किया है जो स्क्रीन पर दिखाई देता है वहीँ नवाजुद्दीन सीरियस रोल में और भी जंचते हैं. खबरों के मुताबिक़ फिल्म का बजट लगभग 90 करोड़ बताया जा रहा है

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आखिर क्‍यों जया और अमिताभ रहते हैं अलग-अलग

आखिर क्‍यों जया और अमिताभ रहते हैं अलग-अलग

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अमर सिंह अपने विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर हैं. इस बार उन्हेंने अपने खासमखास दोस्त अमिताभ बच्चन के बारे में बयान दे दिया है.

अमर सिंह का दावा है कि बॉलीवुड के महान अभ‍िनेता अमिताभ बच्चन और उनकी पत्नी जया बच्चन सालों से एक दूसरे से अलग रह रहे हैं. अमर सिंह ने जया और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन के बीच झगड़े की ओर भी ईशारा किया.

दरअसल, अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में हुए कलह और मुलायम सिंह और उनके बेटे अखि‍लेश यादव के बीच अलगाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. ऐसे में अमर सिंह ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि हर झगड़े के लिए उन्हें ही जिम्मेदार मान लिया जाता है.

अमर सिंह ने कहा कि लोग मुझे अमिताभ और जया बच्चन के अलग होने का कारण भी मानते हैं. जबकि वो दोनों कई साल से जनक और प्रतिक्षा में अलग-अलग रहते हैं. इसी तरह ऐश्वर्या और जया के बीच होने वाले झगड़ों के लिए भी मुझे ही जिम्मेदार ठहराया गया.

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ब्रेड कटोरी चाट

ब्रेड कटोरी चाट

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सामग्री-

ब्रेड स्लाइसेस- 6-7

काबुली चना- 1/4 कप उबला हुआ

आलू- 1/2 कप (उबला हुआ और कटा हुआ)

प्याज- 2

टमाटर- 1

दही- 1/4 कप

लाल मिर्च पाउडर- 1 टीस्पून

चाट मसाला- 1 टीस्पून

धनिया पत्ता- बारीक कटा हुआ

सेव- 2 चम्मच

इमली की चटनी- 2 चम्मच

नमक- स्वादानुसार

तेल- आवष्यकता अनुसार

विधि-

प्याज और टमाटर को बारक काट लीजिए. अब ब्रेड स्लाइसेस के चारों किनारों को काट लीजिए और बेलन की मदद से उसे बेल कर पतला कर दें.

अब कूकीज बेकिंग ट्रे में तेल लगाकर ब्रेड स्लाइसेस को एक-एक करके उसमें कटोरी जैसा सेट कीजिए. उसके बाद 190 डिग्री सेल्सियस से प्री हीट किए हुए ओवन में रख कर 15 मिनट तक बेक कीजिए.

अब एक बाउल में कटा हुआ आलू, टमाटर, प्याज, उबला हुआ चना, लाल मिर्च पाउडर, नमक, चाट मसाला डालकर अच्छी तरह मिला लीजिए.

अब 15 मिनट बाद ब्रड कटोरी क्रिस्पी और ब्राउन होने के बाद ओवन से निकाल कर ठंडा होने दीजिए. उसके बाद ब्रेड एक प्लेट में रख कर कटोरी में थोड़ा-थोड़ा आलू मिश्रण डाल कर उसके ऊपर दही, इमली की चटनी, धनिया पत्ता, सेव से सजाएं. गरमा-गरम ब्रेड कटोरी चाट तैयार है.

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एग फ्रीजिंग तकनीक से किसी भी उम्र में बन सकती हैं मां

एग फ्रीजिंग तकनीक से किसी भी उम्र में बन सकती हैं मां

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निहारिका जब 35 साल की थी तो उन्हें उनकी गाइनेकोलॉजिस्ट ने एक ऐसी तकनीक के बारे में बताया जिसमें वह अपने अंडाणुओं को जमा (फ्रीज) कर अपनी प्रजनन क्षमता को सुरक्षित कर सकती है. एक सिस्ट को निकालने के लिए निहारिका को सर्जरी करवानी पड़ी थी जिसमें उन्होंने अपना एक अंडाशय (ओवरी) खो दिया इसलिए गाइनेकोलॉजिस्ट द्वारा सुझाया गया एग फ्रीजिंग का यह रास्ता उनके लिए एक अच्छा विकल्प था. समायरा पेशे से एक कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं. पिछले कई रिश्तों में सफल न होने के कारण उन्होंने निराश होकर किसी से भी शादी न करने का फैसला किया.

लगभग सात-आठ महीने बाद निहारिका ने अपने परिजनों की मदद से आखिरकार अपने अंडाणुओं को फ्रीज करने का फैसला लिया और महिलाओं के ऐसे विस्तृत हो रहे समूह का हिस्सा बनी जो किसी मेडिकल कारण से नहीं बल्कि करियर या सही पार्टनर न मिलने या अन्य सामाजिक परिस्थितयों के कारण मातृत्व में विलंब करती हैं.

इस बारे में नई दिल्ली के इंदिरा आई.वी.एफ. के एक्सपर्ट बताते हैं कि कई बार विवाहित जोड़े आर्थिक तौर पर स्थिर न होने के कारण या एक सहज स्थिति तक पहुंचने के बाद ही घर में नए सदस्य को लाना चाहते हैं. ऐसे लोग भी इस तकनीक को चुन सकते हैं. इसके अलावा अंडाणुओं को शुरू में या समय से पहले ही सुरक्षित कर लेना ज्यादा फायदेमंद है. उम्र महत्वपूर्ण है क्योंकि अंडाणु 30 की उम्र में शीर्ण होने लगते हैं. इसके अलावा प्रजनन क्षमता भी उम्र के साथ घटने लगती है. अंडाणुओं को रजोनिवृत्ति से ठीक पहले जमा नहीं किया जा सकता इसलिए सावधान रहें क्योंकि आप अपने युवाकाल को पार कर चुके हैं इसलिए अच्छी गुणवत्ता के अंडाणुओं की गारंटी नहीं दी जा सकती.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो एग फ्रीजिंग एक ऐसा मार्ग है जिसे सोफिया वरगारा और किम कर्दाशियां जैसी हॉलीवुड हस्तियों ने अपनाया है. भारत में डायना ने एक उदाहरण स्थापित किया है. हालांकि भारत में अभी भी एग फ्रीजिंग की यह तकनीक सामान्य नहीं है लेकिन धीरे-धीरे यह तकनीक लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है. साथ ही ज्यादातर महिलाओं के करियर उन्मुख होने के कारण यह ट्रेंड अब धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहा है.

 

क्या है एग फ्रीजिंग?

एग फ्रीजिंग जिसे परिपक्व अंडाणु निम्नताप परिरक्षण के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है.

आपके अंडाशय से अंडाणुओं को एकत्रित कर अनिषेचित अंडाशयों को जमाया जाता है और बाद में इस्तेमाल करने के लिए संग्रहित कर रख लिया जाता है. इस तकनीक के दौरान इन्हें 1.96 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लिक्विड नाइट्रोजन में दस साल तक के लिए संग्रहित कर रखा जा सकता है. कुछ हद तक यह डीप फ्रीज करने जैसा है.

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन में एक जमे हुए अंडाणु को पिघलाया जाता है फिर प्रयोगशाला में उसे शुक्राणु के साथ मिलाकर गर्भाशय में स्थापित किया जाता है.

 

समझें इस तकनीक को

यह प्रक्रिया आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) से मिलती-जुलती है. इसके तहत पेषेंट को 10 से 12 दिन तक होर्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि उसका अंडाशय उत्तेजित हो सके और सामान्य से ज्यादा अंडाणु बनाए और विकसित करे. इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को रजोनिवृत्ति जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं. साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसका अंडाशय खतरनाक तरीके से अधिक उत्तेजित न हो जाए इसके लिए उसकी निगरानी भी की जाएगी.

इसके बाद उसके अंडाणु को सामान्य एनेस्थीसिया या दर्द दूर करने वाली दवा देकर पुनः प्राप्त किया जाता है. इसके लिए अल्ट्रासाउंड निर्देशित एक सुई का इस्तेमाल किया जाता है जो प्रत्येक कोश (फॉलिकल) से अंडाशय को खींच लेती है.

 

जब एक महिला अपने जमाए हुए अंडाशयों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार होगी तब उन्हें गर्म किया जाएगा और शुक्राणु के साथ भीतर पहुंचाकर निषेचित होने के लिए छोड़ दिया जाएगा. सफल होने पर प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दो से तीन प्रयासों में बनने वाले भ्रूणों को महिला के गर्भाशय में इस उम्मीद के साथ छोड़ा जाएगा कि इससे वह गर्भधारण कर सकेगी.

 

अंडकोषीय रिजर्व की जांच

महिलाओं की उम्र 30 साल होने के बाद उनकी प्रजनन क्षमता क्षतिग्रस्त होने लगती है. उनके अंडकोषीय रिजर्व में काफी गिरावट आ जाती है इसलिए यह बेहद जरूरी है कि अंडाशय का परीक्षण करवाया जाए. ये जांच महिलाओं का मार्गदर्शन करती हैं कि क्या उन्हें बांझ होने से बचाने के लिए कोई गंभीर कदम उठाया जाना चाहिए या देर होने से पहले सही कदम उठाने की जरूरत है. एक महिला एग फ्रीजिंग के परिणामों को ध्यान में रखकर इस तकनीक को अपना सकती है जिससे कि वह बाद में मातृत्व सुनिश्चित कर सके.

 

सफलता दर

यह देखा गया है कि फ्रोजन एग द्वारा हासिल किए गए गर्भावस्था की सफलता दर नए अंडाणुओं द्वारा प्राप्त की गई गर्भावस्था के बराबर ही है.

कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी महिला कर्मचारियों को एग फ्रीजिंग तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं ताकि बढ़ती उम्र का प्रभाव उनके करियर पर न पड़े और इस कारण से मातृत्व के सुख से वंचित हो जाने का डर भी उन्हें न परेशान करे.

पिछले कई सालों में संग्रहित करने की तकनीकों में काफी सुधार आया है इसलिए सफलता की दरें भी काफी बढ़ी हैं. आने वाले समय में मातृत्व जल्द ही बायोलॉजिकल क्लॉक की बंदिश से स्वतंत्र हो पाएगी.

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हेलीकाप्टर पेरेंटिंग

 हेलीकाप्टर पेरेंटिंग

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माता-पिता के तौर पर जिम्मेदारियां निभाना बहुत कठिन हैं क्योंकि आपके मन में हमेशा बच्चे को अच्छी परवरिश देने की टेंशन रहती है और साथ ही आपको बच्चों के मन की बातें जानने के लिए कई तरह के जतन भी करने पड़ते हैं. लेकिन इस कोषिष में कहीं आप हेलीकाप्टर पेरेंट तो नहीं बन गए हैं? इससे आपका बच्चा परेषान तो नहीं हो गया है? सबसे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग आखिर है क्या? दरअसल जो माता-पिता अपने बच्चे के हर काम में ज्यादा ही इन्वाॅल्व हो जाते हैं उन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है. बच्चों के साथ सपोर्टिव होना और उनके काम में साथ देना एक अलग बात है लेकिन जब इसका दायरा बढ़ जाता है और आप बच्चों की हर छोटी से छोटी चीज को गंभीरता से लेकर उसमें खुद ही लग जाते हैं तब वो हेलिकाॅप्टर पेरेंटिंग की स्थिति बन जाती है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग से प्रभावित बच्चे डिप्रेषन और उत्कंठा के षिकार हो जाते हैं. माता-पिता होने के नाते आप बच्चों के लिए अच्छा करने की सोचते हैं और उनके लिए ओवर-कन्सर्न हो जाते हैं ये स्थिति धीरे-धीरे आपके बच्चे को दूसरों के सामने डिप्रेस करने लगती है. 18 से 25 साल तक के काॅलेज जाने वाले 460 बच्चों पर अध्ययन किया गया. जिन बच्चों की जिंदगी में मां-बाप का दखल ज्यादा था वो अपने फैसले लेने में कम सक्षम नजर आएं. वो किसी भी सवाल का जवाब देने से पहले अपने अभिभावक की ओर देखने लगे. रिसर्च के दौरान उनसे कई टास्क भी कराए गए जिससे ये बात सामने आती है कि किसी मुष्किल हालात का सामना करने में भी ऐसे बच्चे दूसरों के मुकाबले पीछे रह जाते हैं.

इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों से जिस तरह का व्यवहार करते हैं बच्चों का अपने प्रति नजरिया भी वैसे ही बनता है. अगर अभिभावक सपोर्टिव रोल अदा करते हैं तो बड़ा होता बच्चा अपनी चीजें खुद ही मैनेज करना सीखने लगता है. हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग से बचने का मतलब ये नहीं है कि बच्चों को हर तरह की आजादी दे दी जाए. उन्हें कम से कम इतनी छूट तो दी जानी चाहिए जिससे उनके सोचने-समझने की क्षमता को विकसित होने का मौका मिल सके. जानकारों का मानना है कि हेलीकाॅप्टर व्यवहार के पीछे सोच तो अच्छी होती है लकिन अभिभावकों को समझना होगा कि इसके नकारात्मक प्रभाव बच्चों पर ना पड़े.

डिपे्रशन में धकेलता परफेक्शन

वो माता-पिता सावधान हो जाएं जो बच्चों के हर काम में परफेक्शन ढूंढ़ते हैं. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे बच्चों में भी डिप्रेषन की संभावना अधिक पाई गई है. ये बच्चे माता-पिता के डर से और उनके खौफ से कोई भी गलती करने से कतराते हैं. अभिभावकों द्वारा तय किए गए मानकों पर ये खरे नहीं उतर पाते हैं तो उसके लिए भी खुद को ही जिम्मेदार मानते हैं. मौजूदा समय में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी जाने लगी है. सभी माता-पिता चाहते हैं कि सोसायटी में बच्चा दूसरे बच्चों के मुकाबले अच्छा परफाॅर्म करे. माता-पिता कि ये चाहत बच्चों पर प्रेशर बना देती है. वो बच्चों की किसी भी असफलता को स्वीकार करना नहीं चाहते हैं. इसका सारा गुस्सा वो बच्चों पर निकालते हैं. मां-बाप के गुस्से से बच्चे पहले ही इतना ज्यादा घबरा जाते हैं कि कोई काम चाह कर भी सही नहीं कर पाते हैं. गलती होने के डर से वो नई चीजों के लिए प्रयास करने से कतराते हैं. बचपन से उनके मन में बैठा ये डर उनकी आगे की जिंदगी को काफी प्रभावित करता है. न तो वो कुछ नया सीख पाते हैं और न ही कोई क्रिएटिविटी डेवलप कर पाते हैं. कुछ बच्चों में अभिभावकों के गुस्से का खौफ इतना ज्यादा रहता है कि वो गलती करने के बाद उसे स्वीकार भी नहीं करते हैं. अगर समय रहते बच्चों के प्रति आपने अपने व्यवहार में परिवर्तन नहीं किया तो ये स्थिति भयावह हो सकती है. बच्चों के कोमल मन पर आप जैसी छाप छोड़ेंगे उनका बाल मन वैसे ही आने वाले कल के लिए तैयार होगा.

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पुरुषों को भी होती है माहवारी

पुरुषों को भी होती है माहवारी

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ये पढ़कर हैरानी तो आपको जरूर हो रही होगी कि भला पुरुषों को पीरियड्स कैसे हो सकते हैं. इन बातों पर आप खुद ही पहले गौर करें कि क्या आपका पार्टनर पूरे महीने में कुछ दिन छोड़कर शांत और स्थिर रहता है क्या हर महीने वे कुछ दिन थकान या आलस महसूस करता है? क्या आपका पार्टनर अचानक छोटी-छोटी बातों को लेकर अपसेट हो जाता है? क्या वह कुछ दिनों के लिए संवेदनशील हो जाता है? अचानक से मूड स्विंग हो जाता है? कई बार वो बिना मतलब के बहस करने लगता है और अचानक शांत हो जाता है? कई बार वो ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसे पीरियड्स हो गए हैं?

वैसे पुरुषों को भी महिलाओं की तरह हर महीने उस दिक्कत को सहना पड़ता है, ये बात एक षोध से पता चली है. इस शोध के मुताबिक इसे मेडिकल टर्म में ‘इरिटेबल मेल सिंड्रोम’ कहते हैं. इस दौरान मर्दों को पेट और कमर में दर्द, चिड़चिड़ापन, भूख ना लगना या बहुत ज्यादा खाना, गुस्सा आना जैसी चीजें होती हैं. हां, पुरूषों की महावारी में उन्हें रक्तस्राव नहीं होता लेकिन वो बहुत ज्यादा डिप्रेसिव हो जाते हैं. हालांकि शोध में कहा गया है कि हर चार में से एक पुरूष में यह होता है.

कई रिसर्च भी ये साबित कर चुकी हैं कि पुरुषों के हार्मोंस में मासिक चक्र की तरह बदलाव आता है. अगर आपका पार्टनर चिड़चिड़ा होता है, कई बार अचानक इमोशनल हो जाता है या उसमें मूड में उतार-चढ़ाव आता है तो हो सकता है कि उनका हार्मोंस बदलने का मासिक चक्र चल रहा हो. आपको इस दौरान अपने पार्टनर को समझने की जरूरत है और उसका साथ देने की जरूरत है. ऐसे समय में पार्टनर को गले से लगाएं उन्हें सहानुभूति दें. तभी वे इस हार्मोनल उतार-चढ़ाव से लड़ पाएंगे.

गौरतलब है कि इस शोध के लिए करीब 2412 लोगों पर अध्य्यन किया गया. सर्वे में कई महिलाओं ने अपने पार्टनर्स का इंटरव्यू किया, जिसमें उनके पार्टनर ने कई ऐसी कंडीशंस के बारे में बताया जो आमतौर पर मासिक धर्म से संबंधित हैं थकान, संवेदनशीलता, एंजाइटी मूड बदलना जैसे लक्षण.

इस सर्वे में भाग लेने वाली तकरीबन 45 फीसदी महिलाओं का कहना था कि उन्होंने हर महीने के कुछ दिनों में अपने पार्टनर्स में ये लक्षण देखें हैं.

तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं ने ये स्वीकार किया कि उनके पति पीरियड्स के दौरान यानी हार्मोंस बदलाव के दौरान चिड़चिड़े हो जाते हैं.

कई महिलाओं ने ये भी माना कि उनके पति हर महीने के कुछ दिन काफी ज्यादा थकान महसूस करते हैं. जबकि कईयों ने माना कि उनके पति हर महीने के कुछ दिन बहुत अधिक भूख महसूस करते हैं. साथ ही कुछ ने माना कि उनके पति अचानक अपसेट हो जाते हैं और उनका मूड बहुत जल्दी-जल्दी बदलता है.

‘इरिटेबल मेल सिंड्रोम’ के लक्षणों में कन्यूजन, सेक्स इच्छा में कमी, एंजाइटी, थकान, गुस्सा आना, डिप्रेशन, मूड बदलना और सुस्ती आना जैसे लक्षण शामिल है. आमतौर पर वही महिलाएं पुरुषों के इन लक्षणों को पहचान सकती हैं जो उनके बेहद करीब हैं. अध्ययन के दौरान पता चला कि पीड़ित मर्दों की महिला साथियों ने यह माना कि पुरुष माहवारी जैसी चीज सच में होती है जिनके बारे में उनके पार्टनर्स को पता ही नहीं होता है.

रिसर्च ने ये भी दावा किया कि पुरुष हार्मोंस बदलने के दौरान हर घंटे में हार्मोंस स्तर में बदलाव को महसूस कर पाते हैं. टीनेज, युवावस्था और मिड लाइफ में ये बदलाव बहुत अधिक महसूस होता है. बाकी उम्र के पड़ाव में पुरुषों को ये कम ही महसूस होता है.

अब तो आप समझ गए होंगे पुरुषों में होने वाली माहवारी महिलाओं से थोड़ी अलग होती है. जिस तरह पुरुष आपका साथ देते हैं आपको भी उस दौरान उन्हें बहुत प्यार देना चाहिए.

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