राम-लीला

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अगर आप राम-लीला देखने जा रहे हैं, तो सबसे पहले यह जान लीजिए कि इस फिल्म का दशहरे में होने वाली किसी रामलीला या इसके किरदारों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। फिल्म की शुरुआत में ही भंसाली ने साफ कर दिया है कि उनकी फिल्म शेक्सपियर के नाटक रोमियो-जूलियट की लव स्टोरी से प्रेरित है।

बतौर डायरेक्टर भंसाली की पिछली दोनों फिल्में सांवरिया और गुजारिश बेशक बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास न कर पाई हों, लेकिन क्रिटिक्स और दर्शकों के एक बड़े वर्ग ने इन फिल्मों को पसंद किया। वहीं, राम लीला की बात की जाए तो उन्होंने शायद पहली बार अपनी फिल्म में बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ कई मसालों को कहानी का हिस्सा बनाया है।

कहानी: 500 साल से चल रही रजाड़ी और सनेड़ा खानदानों के बीच फैली दुश्मनी, नफरत और खूनी होली के बीच गुजरात के एक छोटे से गांव में राम (रणवीर सिंह) और लीला (दीपिका पादुकोण) की लव स्टोरी शुरू होती है। रजाड़ी खानदान का राम दुश्मनी को खत्म करना चाहता है, लेकिन चाहकर भी अपने पिता और बड़े भाई के सामने कर कुछ नहीं पाता। राम, चोरी-चकारी करने के साथ गांव में अपना छोटा सा विडियो थिएटर चलाता है, जहां ब्लू फिल्में दिखाई जाती हैं। होली के दिन राम अपने दोस्तों के साथ सनेड़ा खानदान में होली खेलने जाता है, यहीं पहली मुलाकात में राम और लीला एक दूसरे पर मर मिटते हैं।

धीरे-धीरे इन दोनों का प्यार अपनी फैमिली की नजरों से दूर छिपकर परवान चढ़ने लगता है। राम और लीला अच्छी तरह से जानते हैं कि राम का परिवार और उधर लीला की बा धानोकर (सुप्रिया पाठक) इस रिश्ते को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं करेगी। इस बीच, गोलियों के एक खूनी खेल में राम के भाई की हत्या सनेड़ा लोगों से होती है, वहीं मौजूद लीला के भाई की भी हत्या कर दी जाती है। अपने-अपने भाई की हत्याओं के बावजूद लीला और राम के रिश्तों में कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक दिन लीला, राम के साथ भागने का फैसला करती है। दूसरी ओर, लीला की मां अपने बेटे की हत्या का बदला पूरे रजाड़ी खानदान से लेने पर आमादा हैं। रजाड़ी खानदान के लोग राम को अपना नेता चुनते हैं, जो सनेड़ा खानदान से अपने भाई की हत्या का बदला ले सके।

ऐक्टिंग: राम के किरदार में रणवीर सिंह ने अब तक के फिल्मी करियर का बेहतरीन काम किया है। इस किरदार के लिए रणवीर ने महीनों जिम में पसीना बहाया तो डायलॉग डिलिवरी के लिए उन्होंने एक गुजराती वर्कशॉप अटेंड की। वहीं, दीपिका पांरपरिक गुजराती कॉस्टयूम में खूब जमी हैं। दीपिका की ननद रसीला के किरदार में ऋचा चड्ढा ठीकठाक हैं। सरपंच की छोटी सी भूमिका में रजा मुराद अपनी पहचान छोड़ने में कामयाब रहते हैं। हां, बा के किरदार में सुप्रिया पाठक की मेहनत पर्दे पर साफ नजर आती है।

निर्देशन: हम दिल दे चुके सनम के बाद संजय लीला भंसाली ने उसी स्टाइल की फिल्म बनाई है, जिसमें उनको महारत हासिल है। बतौर डायरेक्टर उन्होंने हर किरदार से बेहतरीन काम लिया है। बॉक्स ऑफिस पर कमाई की चाह में प्रियंका चोपड़ा का आइटम नंबर भी फिट किया है। स्क्रीनप्ले की बात की जाए तो यहां भंसाली कमजोर रहे। इंटरवल से पहले राम-लीला के मिलन और उसके बाद हर दूसरे सीन में गोलियों की बौछार करने में ऐसे फंसे कि कहानी में इमोशन का टच देना पूरी तरह से भूल गए। भव्य लोकेशन, गहने-कपड़ों पर भंसाली ने मेहनत की है।

संगीत: प्रियंका पर फिल्माया गया आइटम नंबर पहले से हिट है। वहीं गुजराती-हिंदी का टच लिए फिल्म के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा गानों का फिल्मांकन बेहतरीन है। मौजूदा म्यूजिक ट्रेंड से हटकर भंसाली ने इस बार कुछ अलग म्यूजिक सामने रखा है। फिल्म में दिया उनका म्यूजिक खासा पसंद किया जा रहा है।

क्यों देखें: भंसाली के फैन हैं, तो इस फिल्म को मिस न करें। रणवीर और दीपिका की गजब केमेस्ट्री, डायलॉग डिलिवरी और दीपिका का बोल्ड अंदाज आपको भाएगा। सुप्रिया पाठक का किरदार देखने लायक है। हां राम और लीला की इस हॉट और गोलियों के साये में बनी लव स्टोरी देखने जा रहे हैं, तो प्लीज राम-लीला को दिमाग से निकाल दें। साफ सुथरी और फैमिली क्लास की कसौटी पर फिल्म खरी नहीं उतर पाएगी।