दीप का अर्थ जीवन में खुशियां बांटना /diwali festival

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दीप का अर्थ जीवन में खुशियां बांटना

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दीपों का त्योहार आने वाला है. दीप जलाने का अर्थ होता है सब कुछ रोशन कर देना. रोशन होने का मतलब केवल अंधेरा भगा देना नहीं हो सकता बल्कि एक अर्थ में सभी के जीवन में खुशियां बांटना भी हो सकता है. त्योहारों में हम जितना अधिक रिचुअल्स का पालन करते हुए दिखते हैं उतना क्या हम लोक कल्याण के लिए कुछ करते हैं? हमेशा यह देखा जाता है कि दीपावली में ढेरों पटाखे न फोड़ने की अपील की जाती है. होली में पानी न बरबाद करने की हिदायतें जारी की जाती हैं. बकरीद में कुर्बानी न करने का मैसेज दिया जाता है. कहने का अर्थ है कि त्योहारों के नाम पर लकीर का फकीर न होकर एक प्रगतिशील नागरिक बने रहने और पुरातन परिपाटी जिससे न केवल हमारा नुकसान हो रहा है बल्कि समाज के लोगों पर भी प्रभाव पड़ता है, त्यागने की बातें होती हैं. हम त्योहारों के असली मतलब को समझते हुए उन्हें मनाने के बारे में विचार करना चाहिए जिससे अपने साथ-साथ दूसरों को भी सम्मिलित कर सकें और हमारे आस-पास खुशियां बिखरने लगें.

खुशियां बांटने में हैं असली सुख

हमें यह बचपन से ही सिखाया जाता है कि जो भी हमारे पास है उसे बांटकर खाना चाहिए. तो बड़े होने पर हम यह बात क्यों नहीं याद रख पाते हैं? हमने हमेषा देखा है कि जब भी हम किसी को खुशियां देते हैं तो वह हमें ढेर सारी दुआएं देकर जाता है.  कहने का अर्थ है कि देने में ही असली सुख है. त्योंहारों में हम जो भी खर्च करने की योजना बना रहे हैं तो उसमें कुछ भाग निकालकर दूसरे जरूरतमंद को देना हमें आत्मिक सुख से भर देगा. हमारे आसपास ऐसे अनगिनत लोग होगें जो छोटी-मोटी जरूरतों के मोहताज हों, उन्हें उनकी आवष्यकता के अनुसार देकर त्योहारों का असली मकसद पूरा करें.

प्रकृति के साथ-साथ चलें

कोई भी त्योहार प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर नहीं मनाया जा सकता है. आखिर जब हम इसी धरती पर रहते हैं तो इसे अशुद्ध कैसे कर सकते हैं?  इसके पर्यावरण, जीव-जंतुओ और पेड़-पौधों को कैसे नुकसान पहुंचा सकते हैं? दीपों से उजाला करने की जगह हम लाइट की तमाम झालरों या कैंडल जलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. पटाखें तो ध्वनि और वायु पोल्‍युशन के कारण कुख्यात हो चुके हैं. तो क्यों न हम घी और तेल के दिये जलाने के साथ-साथ पटाखे न फोटने का कृतसंकल्प ले लें.

थोड़ा रचनात्मक हो जाएं

घर को सजाने के लिए जरूरी नहीं है कि बाजार से समानों को खरीद-खरीदकर घर भर डालें. सड़क और बाजार में  अपनी कला का प्रदर्षन करने वाली छोटी-छोटी दुकानों से समान खरीदकर उनके त्योहार बनाने में सहायता कर सकते हैं. घर में पड़ी बेकार की चीजों से आप खुद सजावटी चीजें बनाकर री-यूज को बढ़ावा देकर अपने बच्चों को बहुत कुछ सिखा सकती हैं. प्रकृति से थोड़े पत्ते और फूल लेकर भी अपने घर को सुंदर तरीके से सजाया जा सकता है.

सामूहिक रूप से उत्सव मनाएं

हमेषा कहा जाता है कि त्योहारों का मजा अपनों के साथ आता है. इस बात का अर्थ समझते हुए त्योहार हमेषा सामुहिक रूप से मनाने चाहिए. एक कैम्पस या सोसायटी में रहने वाले सभी लोग मिलकर कार्यक्रम को एक जगह इकट्ठे मनाने से हमारे अंदर सामुहिक भावना को जन्म देती है. आजकल हम अपने पड़ोसियों में अपनी दिलचस्पी खोते जा रहे हैं. जबकि हमारा सुख-दुख जानने वाला सबसे निकट हमारा पड़ोसी ही होता है. ऐसे में अपने पड़ोसी और उनके पड़ोसियों के साथ मिलने-जुलने की भावना इन त्योहारों की मार्फत करने में लाभ ही लाभ है.

सोच-समझकर उपहार दें

अपनी खुषियां प्रर्दषित करने के लिए हम एक-दूसरे को उपहार बांटते हैं. उपहार देने के लिए कभी दबाव में नहीं आना चाहिए. उपहारों को कभी अपने स्टेटस का सवाल नहीं बना लेना चाहिए. उपहार आपकी खुषी बढ़ाने का माध्यम हो सकते हैं न कि बुराई करवाने वाला कारक. इसलिए उपहार ऐसे देने चाहिए जिससे सामाने वाला व्यक्ति जुड़ सके. उपहार के नाम पर व्यर्थ की चीजें बांटने से बचना चाहिए. त्योहारों के समय मिठाई बगैरह काफी खराब आती हैं उन्हें देने से बचना चाहिए.

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