स्टाइलिस्ट बिग रिंग

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स्टाइलिस्ट बिग रिंग का जमाना

बॉलीवुड और हॉलीवुड ऎक्ट्रेस जेनिफर ऎनिस्टोन की बिंग रिंग इन दिनों सभी को अट्रैक्ट कर रही है वहीं बॉलीवुड सबसे खूबसूरत अभिनेत्री ऎश्वर्या राय बच्चान ने एक फंक्शन के दौरान स्टाइलिश रिंग पहननी है। आप भी स्टाइलिश जूलरी पसंद है, तो इसके बारे में सोच सकती हैं-

बडे साइज की रिंग इस समय खूब पसंद की जा रही है। भले ही ये रिंग्स वेट में कम हैं, लेकिन गोल्ड के साथ स्टोंस से उनको खूबसूरत लुक दिया गया है। इसमें भी ट्रडिशनल डिजाइंस ज्यादा डिमांड में हैं।

मॉड के साथ यूनीक लुक यंग गर्ल्स एकदम उस स्टाइल पर फिदा होती है, जिनमें वह मॉड लुक के साथ यूनीक भी दिखें। इसकी बानगी है बिंग रिंग यानी बडे साइज की रिंग। इसकी `ालिटी इसका साइज है। यानी जितनी बिग, उतनी अट्रैक्टिव। आपको बता दें कि फैशनेबल लुक पाने में इसका साइज खासा मायने रखता है।

एक्सेसरी डिजाइनर के अनुसान पहले गोल्ड केवल यलो कलर में ही आता था, लेकिन अब इसमें वाइट, रेड, पिंक और दूसरे कई कलर्स आने लगे हैं। इसलिए गर्ल्स इसे मिक्स गोल्ड में पहनना प्रिफर कर रही हैं। यहां तक कि बिंग रिंग ने कई फिंगर्स पर रिंग्स पहनने के ट्रेंड को आउट कर दिया है। रेग्युलर ड्रेसेज के साथ इन दिनों ट्रेंड मल्टीकलर पैटर्न में एक बडी रिंग पहनने का है। वैसे, बिंग रिंग की पॉपुलैरिटी इतनी ज्यादा है कि इवनिंग पार्टी या किसी अकेजन पर इसे बखूबी कैरी किया जा रहा है। दरअसल, पार्टी वियर के साथ ऎसी रिंग्स बेहद ग्लैमरस लुक देती हैं।

डिजाइन लाइट, लेकिन दिखे हैवी सोने में आ रही तेजी को देखते हुए जूलर्स अब ऎसी डिजाइंस तैयार करने लगे हैं, जिसका डिजाइन दिखने में तो हैवी होता है, लेकिन होती लाइट हैं। इससे गोल्ड को खरीदना हर किसी के लिए पॉसिबिल हो पाता है। गोल्ड में हैवी डायमंड का यूज किया जाता है, इसलिए गोल्ड की `ांटिटी उसमें कम रहती है। मिक्स होने से वह क्लासी पीस बन जाता है। दरअसल, पिछले 2- 3 साल में सोने में तेजी को देखते हुए जूलर्स ने डिजाइंस का अट्रैक्शन बरकरार रखते हुए जूलरी का वजन कम कर दिया है, ताकि इनकी कीमत कस्टमर्स के बजट में आ जाए, लेकिन यूथ को यह स्टाइल भा रहा है।

हरे आलू से करें परहेज

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आलू को बतौर सब्जी इस्तेमाल करने के अलावा भी खाने की कई चीजों में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आलू अगर हरा हो जाए तो उसे खाने से बचना चाहिए। इन हरे आलूओं में क्लोरोफिल की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिस वजह से ये हरे हो जाते हैं, जोकि सेहत के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। रिसर्च में पता लगा है कि हरे आलुओं में सोलैनाइन (solanine) बहुत ज्यादा मात्रा में होता है, जोकि जहरीला पदार्थ है। ज्यादा मात्रा में इसका सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है। साथ ही, इसके सेवन से जी मिचलाना, सिरदर्द, डायरिया, उलटियां जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। नेब्रास्का लिंकन यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि अगर 45 किलो वजन का शख्स 16 आउन्स (करीब आधा किलो) हरे आलू का सेवन करे तो वह बीमार पड़ सकता है। आलुओं को हरा होने से बचाने के लिए उन्हें हमेशा ठंडी और डिम लाइट वाली जगह पर ही जमा करना चाहिए। अगर हरा आलू खा रहे हैं और उसका स्वाद कड़वा लगता है, तो उसे बिल्कुल न खाएं।

करीना

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 शादी के बाद लाइफ में कितना चेंज आया है?
पिछले कुछ अरसे से मैं इस सवाल को सुनते-सुनते अपसेट हो चुकी हूं। अब तो मैं मीडिया से पूछना चाहती हूं कि मैरेज के बाद आप यही सवाल किसी हीरो से क्यों नहीं करते? आज इंडस्ट्री का हर कामयाब हीरो शादीशुदा है, लेकिन कोई उनसे ऐसा सवाल नहीं करता। दरअसल, आज भी मीडिया यही सोचता है कि शादी के बाद हिरोइन का करियर ढलान पर आ जाता है, लेकिन मैं ऐसा बिल्कुल नहीं सोचती। इंडस्ट्री में हमारी फैमिली पीढ़ी दर पीढ़ी काम कर रही है और मेरी यही ख्वाहिश है कि आखिरी सांस तक इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनी रहूं।

आप 13 साल से इंडस्ट्री में हैं। क्या अब भी अपनी नई फिल्म की रिलीज से पहले कुछ नर्वस होती हैं या फिल्म हिट नहीं होने पर अपसेट?
अब क्या, ऐसा पहले भी कभी नहीं हुआ। मैं एक ऐक्ट्रेस हूं। मेरा काम अपने किरदार को बेहतर ढंग से निभाना और अपने डायरेक्टर की कसौटी पर खरा उतरना है। हां, अब हमारे इस काम में अपनी फिल्म का प्रमोशन करना भी जुड़ गया है, तो इसे भी मैं पूरी ईमानदारी के साथ निभाती हूं। फिल्म रिलीज होने से पहले और बाद में मैं कभी नर्वस नहीं हुई, क्योंकि मैं अपनी डयूटी पूरी ईमानदारी के साथ पूरी करती हूं।

सुना है, अब आप सैफ और उनकी फैमिली की रजामंदी से फिल्म साइन करती हैं। रिवॉल्वर रानीके अलावा एक-दो और फिल्में आपने बोल्ड किरदार की वजह से छोड़ी हैं?
ऐसा कुछ नहीं है! बेवजह किसी बात को तूल देना कुछ गॉसिप पत्रकारों का पहला काम होता है। आप जिस फिल्म की बात कर रहे हैं, उस फिल्म के डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया से भी बात कर लें, मैं ‘बुलेट राजा’ के सेट पर सैफ से मिलने गई थी, वहीं पर धूलिया ने सैफ की मौजूदगी में ‘रिवॉल्वर रानी’ के बारे में बात की थी। इस दौरान न तो उन्होंने मुझे फिल्म ऑफर की और न ही मैंने कभी इसके बाद इसकी स्क्रिप्ट सुनी। ऐसे में, फिल्म छोड़ने की बात कहां से आ गई। हां, ऐसा भी नहीं कि मैं नई फिल्म के बारे में सैफ से बात नहीं करती। हम दोनों एक फील्ड में हैं, सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि सैफ भी अपनी प्रॉडक्शन कंपनी के बारे में मुझसे डिस्क्स करते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सैफ या उनकी फैमिली ने मेरे लिए कोई लक्ष्मण रेखा बना रखी है।

 

ऐसी कोई ख्वाहिश, जो जल्दी पूरी करना चाहती हों?
एक ख्वाहिश? अरे, क्या बात कर रहे हैं! अभी तो बहुत ख्वाहिशें बाकी हैं। हां, डैड और करिश्मा के साथ एक फिल्म जल्दी से जल्दी करना चाहती हूं। ऐसे किसी ऑफर का इंतजार है।

सुना है कि आपकी अगली फिल्म गोरी तेरे प्यार मेंमें आप गांव की गोरी बनी हैं?
अरे नहीं, इस फिल्म में मेरा किरदार गोरी वाली इमेज से एकदम डिफरेंट और बहुत बिंदास टाइप का है। पुनीत मल्होत्रा ने इस प्रॉजेक्ट पर बहुत मेहनत की है। इन दिनों जब 40-50 दिनों में डायरेक्टर फिल्म कंप्लीट कर लेते हैं, तब हमने इस प्रॉजेक्ट पर 200 दिन काम किया है। 40 से 45 डिग्री तापमान के बीच इमरान और मैंने शूटिंग की है। इमरान के साथ पहले की तरह इस बार भी सेट पर बहुत एंजॉय किया। इमरान की सबसे बड़ी खूबी सेट पर मौज-मस्ती का माहौल बनाए रखना और कैमरे के सामने आते ही टोटली नर्वस हो जाना है। इमरान और मेरी जोड़ी दर्शकों की हर क्लास को पसंद आएगी।

मल्टिप्लेक्स के इस दौर में क्या यंग जेनरेशन की कसौटी पर गोरी और गांव वाला कॉन्सेप्ट खरा उतर पाएगा?
क्यों नहीं! यंग जेनरेशन कुछ नया देखना चाहती है। मेरे सामने फिल्म के डायरेक्टर पुनीत बैठे हैं, इसलिए कहानी के बारे में तो कुछ नहीं कहूंगी, लेकिन इतना जरूर कह सकती हूं कि मैं फिल्म में किसी गांव की गोरी नहीं हूं। मेरा किरदार टोटली डिफरेंट है, जो जेनएक्स को पसंद आएगा।

इंडस्ट्री के हर खान के साथ आपने सुपरहिट फिल्में दी हैं। आपके हज्बंड सैफ अली खान का नंबर कब आएगा?
(हंसते हुए) न जाने क्यों, मुझे लगता है कि हम दोनों के फैंस हमें अलग-अलग देखना चाहते हैं। हम जब भी कोई फिल्म एक साथ करते हैं, तो यकीन मानिए कि उस वक्त हम सबसे ज्यादा नर्वस होते हैं। शुरु से लेकर आखिर तक यही कोशिश रहती है कि इस बार कुछ ऐसा नया करें कि हमारी जोड़ी बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट हो जाए। लेकिन अफसोस, ऐसा हो नहीं पाता। ऐसा भी नहीं है कि हमारी फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आती। यहां तक की क्रिटिक्स भी अक्सर हम दोनों की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री की तारीफ करते हैं। वहीं फिल्मों का बिजनेस भी ठीक-ठाक रहता है। बावजूद इसके कुछ तो जरूर है कि हमारी फिल्म उतनी हिट नहीं हो पाती।

कभी इस बारे में सैफ और आपने सोचा?
बिल्कुल नहीं, शादी के बाद से हम दोनों के पास इतना काम है कि इस बारे में सोचने का वक्त ही कहां है! शूटिंग और इवेंट वगैरह से जब कभी फुर्सत मिलती है, तो फिल्मों और काम को छोड़कर और बहुत कुछ है, जिस बारे में बात की जाए और यही हम करते हैं। मुझे नहीं लगता कि सैफ या मुझे इस बारे में कभी सोचकर अपना वक्त खराब करना चाहिए।

 

मूवी रिव्यू: रज्जो

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कलाकार: कंगना रणौत, पारस अरोड़ा, जया प्रदा, प्रकाश राज, महेश मांजरेकर

निर्माता : एम शाह निर्देशक : विश्वास पाटिलगीत : समीर, देव कोहली, विश्वास पाटिल संगीत: उत्तम सिंह,गुरमीत सिंह

अवधि : 137mins

मूवी टाइप : Drama

करीब दो सप्ताह पहले कंगना ने कृष 3 में काया के किरदार को कुछ ऐसे बेहतरीन ढंग से पर्दे पर उतारा कि दर्शक इस फिल्म के सुपर हीरो कृष और काया की तारीफें करते नजर आए। कुछ ऐसी ही तारीफें कंगना इस शुक्रवार पर्दे पर उतरी रज्जो के लिए भी बटोर रही हैं। यूं तो इस फिल्म में कंगना के अलावा महेश मांजरेकर, प्रकाश राज, जया प्रदा जैसे कई दूसरे मंझे हुए स्टार्स भी हैं, लेकिन फिल्म की लीड रज्जो के किरदार में कंगना कुछ ऐसे ढल गई हैं कि हॉल से निकलने के बाद आपको याद रह जाती हैं।

स्क्रिप्ट की खामियों के साथ-साथ कंगना का बेहतरीन अभिनय इस फिल्म की सबसे बडी यूएसपी है। पिछले कुछ अर्से से तेजी से पनपते मल्टिप्लेक्स के इस दौर में सिल्वर स्क्रीन पर आपको ब्रेक डांस से लेकर पीटी नुमा डांस तो हर दूसरी फिल्म में नजर आ जाएंगे। लेकिन अगर मुजरे की बात की जाए, तो लीक से हटकर फिल्म बनाने या कुछ नया दिखाने की चाह में फिल्मनगरी के मेकर इस बेहतरीन नृत्य शैली को अब लगभग भूल चुके हैं।

ऐसे दौर में बॉक्स आफिस कलेक्शन का मोह छोड़कर डायरेक्टर विश्वास पाटिल और फिल्म की प्रोडक्शन कंपनी ने जोखिम तो लिया लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और लचर एडिटिंग के चलते सवा दो घंटे की यह म्यूज़िकल फिल्म दर्शकों की उस क्लास की कसौटी पर भी खारी नहीं उतर रही है जिसके लिए इस फिल्म को बनाया गया है। यह यकीनन फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है।

कहानी: बदनाम गलियों में रज्जो (कंगना राणौत) अपने कोठे पर मुजरा करती है। रज्जो की खूबसूरती और उसका बेहतरीन मुजरा शहर के अमीरों को इस कोठे तक अक्सर हर शाम खींच लाता है। इस कोठे को बेगम (महेश मांजरेकर) चलाती है जिसका पूरे इलाके में दबदबा है। रज्जो की कहानी में टर्न उस वक्त आता है जब यंग किक्रेटर चंदू (पारस अरोड़ा) अपनी टीम की जीत के जश्न को सेलिब्रेट करने पहुंचता है। रज्जो का मुजरा देखने के बाद चंदू उसकी खूबसूरती पर मर-मिटता है। चंदू की उम्र करीब अठारह साल है। रज्जो उससे उम्र में बड़ी है, लेकिन चंदू को इसकी परवाह नहीं। कुछ मुलाकातों के बाद रज्जो भी चंदू की और आकर्षित होने लगती है। अब अगर आपको हम रज्जो के अतीत और चंदू-रज्जो की लव स्टोरी के बीच विलेन बनने वालों के बारे में बताने लगे तो फिल्म में देखने के लिए कुछ नहीं बचेगा।

ऐक्टिंग: रज्जो के किरदार में कंगना शुरू से आखिर तक फिल्म में छाई हुई हैं। अगर कंगना के डांस या मुजरे की बात करें तो यकीनन कंगना की मेहनत साफ नजर आती है। कंगना का मुजरा ही इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है। चंदू के किरदार में पारस अरोड़ा फिट बैठते हैं, लेकिन कंगना के सामने जब भी पारस नजर आए कुछ दबे-दबे लगे। अन्य भूमिकाओं में, बेगम के किरदार में महेश मांजरेकर खूब जमे हैं। प्रकाश राज एकबार फिर अपने पुराने स्टाइल में दिखे हैं। जया प्रदा और दिलीप ताहिल के करने के लिए फिल्म में कुछ खास था ही नहीं।

निर्देशन: विश्वास पाटिल के निर्देशन में आत्मविश्वास की कमी साफ नजर आती है। फिल्म के सेट और डांस पर तो उनकी मेहनत साफ नजर आती है, लेकिन कहानी की सुस्त रफ्तार और अस्सी-नब्बे के दशक की फिल्मों में नजर आने वाला माहौल रज्जो को यंगस्टर्स से दूर करता है।

संगीत: उत्तम सिंह ने कहानी के मिजाज और माहौल पर फिट संगीत दिया है। ‘जुल्मी रे जुल्मी’ और ‘कैसे मिलूं मैं जो मुझे पसंद आया’ उन म्यूजिक लवर्स की कसौटी पर खरे उतरने का दम रखते है जो ब्रेकडांस और पार्टी आल नाइट जैसे गानों के बीच कुछ नया सुनना चाहते हैं।

क्यों देखें: बरसों बाद सिल्वर स्क्रीन पर बेहतरीन मुजरा और कंगना का शानदार अभिनय इस फिल्म में देखने लायक है। हां, अगर टोटली मसाला और ऐक्शन फिल्मों के शौकीन है तो ‘रज्जो’ से मिलकर अपसेट होंगे।

राम-लीला

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अगर आप राम-लीला देखने जा रहे हैं, तो सबसे पहले यह जान लीजिए कि इस फिल्म का दशहरे में होने वाली किसी रामलीला या इसके किरदारों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। फिल्म की शुरुआत में ही भंसाली ने साफ कर दिया है कि उनकी फिल्म शेक्सपियर के नाटक रोमियो-जूलियट की लव स्टोरी से प्रेरित है।

बतौर डायरेक्टर भंसाली की पिछली दोनों फिल्में सांवरिया और गुजारिश बेशक बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास न कर पाई हों, लेकिन क्रिटिक्स और दर्शकों के एक बड़े वर्ग ने इन फिल्मों को पसंद किया। वहीं, राम लीला की बात की जाए तो उन्होंने शायद पहली बार अपनी फिल्म में बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ कई मसालों को कहानी का हिस्सा बनाया है।

कहानी: 500 साल से चल रही रजाड़ी और सनेड़ा खानदानों के बीच फैली दुश्मनी, नफरत और खूनी होली के बीच गुजरात के एक छोटे से गांव में राम (रणवीर सिंह) और लीला (दीपिका पादुकोण) की लव स्टोरी शुरू होती है। रजाड़ी खानदान का राम दुश्मनी को खत्म करना चाहता है, लेकिन चाहकर भी अपने पिता और बड़े भाई के सामने कर कुछ नहीं पाता। राम, चोरी-चकारी करने के साथ गांव में अपना छोटा सा विडियो थिएटर चलाता है, जहां ब्लू फिल्में दिखाई जाती हैं। होली के दिन राम अपने दोस्तों के साथ सनेड़ा खानदान में होली खेलने जाता है, यहीं पहली मुलाकात में राम और लीला एक दूसरे पर मर मिटते हैं।

धीरे-धीरे इन दोनों का प्यार अपनी फैमिली की नजरों से दूर छिपकर परवान चढ़ने लगता है। राम और लीला अच्छी तरह से जानते हैं कि राम का परिवार और उधर लीला की बा धानोकर (सुप्रिया पाठक) इस रिश्ते को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं करेगी। इस बीच, गोलियों के एक खूनी खेल में राम के भाई की हत्या सनेड़ा लोगों से होती है, वहीं मौजूद लीला के भाई की भी हत्या कर दी जाती है। अपने-अपने भाई की हत्याओं के बावजूद लीला और राम के रिश्तों में कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक दिन लीला, राम के साथ भागने का फैसला करती है। दूसरी ओर, लीला की मां अपने बेटे की हत्या का बदला पूरे रजाड़ी खानदान से लेने पर आमादा हैं। रजाड़ी खानदान के लोग राम को अपना नेता चुनते हैं, जो सनेड़ा खानदान से अपने भाई की हत्या का बदला ले सके।

ऐक्टिंग: राम के किरदार में रणवीर सिंह ने अब तक के फिल्मी करियर का बेहतरीन काम किया है। इस किरदार के लिए रणवीर ने महीनों जिम में पसीना बहाया तो डायलॉग डिलिवरी के लिए उन्होंने एक गुजराती वर्कशॉप अटेंड की। वहीं, दीपिका पांरपरिक गुजराती कॉस्टयूम में खूब जमी हैं। दीपिका की ननद रसीला के किरदार में ऋचा चड्ढा ठीकठाक हैं। सरपंच की छोटी सी भूमिका में रजा मुराद अपनी पहचान छोड़ने में कामयाब रहते हैं। हां, बा के किरदार में सुप्रिया पाठक की मेहनत पर्दे पर साफ नजर आती है।

निर्देशन: हम दिल दे चुके सनम के बाद संजय लीला भंसाली ने उसी स्टाइल की फिल्म बनाई है, जिसमें उनको महारत हासिल है। बतौर डायरेक्टर उन्होंने हर किरदार से बेहतरीन काम लिया है। बॉक्स ऑफिस पर कमाई की चाह में प्रियंका चोपड़ा का आइटम नंबर भी फिट किया है। स्क्रीनप्ले की बात की जाए तो यहां भंसाली कमजोर रहे। इंटरवल से पहले राम-लीला के मिलन और उसके बाद हर दूसरे सीन में गोलियों की बौछार करने में ऐसे फंसे कि कहानी में इमोशन का टच देना पूरी तरह से भूल गए। भव्य लोकेशन, गहने-कपड़ों पर भंसाली ने मेहनत की है।

संगीत: प्रियंका पर फिल्माया गया आइटम नंबर पहले से हिट है। वहीं गुजराती-हिंदी का टच लिए फिल्म के लगभग आधा दर्जन से ज्यादा गानों का फिल्मांकन बेहतरीन है। मौजूदा म्यूजिक ट्रेंड से हटकर भंसाली ने इस बार कुछ अलग म्यूजिक सामने रखा है। फिल्म में दिया उनका म्यूजिक खासा पसंद किया जा रहा है।

क्यों देखें: भंसाली के फैन हैं, तो इस फिल्म को मिस न करें। रणवीर और दीपिका की गजब केमेस्ट्री, डायलॉग डिलिवरी और दीपिका का बोल्ड अंदाज आपको भाएगा। सुप्रिया पाठक का किरदार देखने लायक है। हां राम और लीला की इस हॉट और गोलियों के साये में बनी लव स्टोरी देखने जा रहे हैं, तो प्लीज राम-लीला को दिमाग से निकाल दें। साफ सुथरी और फैमिली क्लास की कसौटी पर फिल्म खरी नहीं उतर पाएगी।